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रविवार, 21 जुलाई 2013

थायरायड से बचाव एवं चिकित्सा के उपाय ! Part-2

thyroid1.jpgथायरायड ग्रंथि एवं इससे होनेवाली समस्याओं के लक्षणों आदि की संक्षिप्त जानकारी मैंने इस श्रृंखला के पहले लेख में देने का प्रयास किया था ,आइये  अब जानें थायरायड की समस्या से बचाव एवं सम्बंधित चिकित्सोपयोगी जानकारी :-
क्या नहीं खाएं :
-थायरायड से सम्बंधित समस्याओं के लिए सोया एवं इससे बने अन्य पदार्थों को विलेन नंबर 1 माना गया है, आधुनिक शोध इस बात को प्रमाणित भी कर रहे हैं कि लगभग एक तिहाई बच्चे जो ऑटोइम्यून थायरायड से सम्बंधित समस्याओं से पीड़ित होते है उनमें सोया-मिल्क या इससे बने अन्य पदार्थ इस समस्या का एक बड़ा कारण हैं !आप यह जानते होंगे कि सोयाबीन हायड्रोजेनेटेडफैट एवं पालीअनसेचुरेटेड ऑयल का सबसे बड़ा स्रोत है !
-फूलगोभी,ब्रोकली एवं पत्ता गोभी स्वयं में "गूट्रोजन"  पाये जाने के कारण थायरायड हार्मोन्स के प्रोडक्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं अतः इस समस्या से ग्रसित रोगी को भोजन में इन्हें लेने से बचना चाहिए I 
क्या खाएं :
-आयोडीन :थायराइड की समस्या में आयोडीन की  भूमिका अतिमहत्वपूर्ण होती है इसी न्युट्रीयंट पर थायरायड की कार्यकुशलता निर्भर करती है I पूरी दुनिया में ऑटोइम्यून कारणों से उत्पन्न होनेवाली थायरायड की समस्या को छोड़कर बांकी अधिकाँश रोगियों में आयोडीन की कमी इस समस्या का मूल कारण है, हालाकि आयोडाईज्ड नमक एवं प्रोसेस्ड भोज्य पदार्थों के कारण आज आयोडीन की कमी से उत्पन्न होनेवाली इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है I
-विटामिन डी :  ऑटोइम्यून समस्या के कारण कम थायरोक्सिन बनना (हाशिमोटोडीजिज)  एवं अधिक थायरोक्सिन बनना (ग्रेव्स डिजीज) दोनों ही स्थितियों में विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन आवश्यक होता है !अतः वैसे भोज्य पदार्थ जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन -डी पाया जाता हो जैसे :मछली,अंडे,दूध एवं मशरूम का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए और यदि विटामिन -डी की मात्रा आवश्यक मात्रा से कम है तो इसे सप्लीमेंट के रूप में चिकित्सक के परामर्श से लेना चाहिए !
-सेलीनियम :थायराइड ग्रंथि में सेलीनियम उच्च  सांद्रता में पाया जाता है, इसे थायराइड-सुपर-न्युट्रीएंट भी कहा जाता है, यह थायराइड से सम्बंधित अधिकाँश एन्जायम्स का एक प्रमुख घटक द्रव्य है ,इससे थायराइड  ग्रंथि की कार्यकुशलता नियंत्रित होती है I सेलेनियम एक ऐसा आवश्यक सूक्ष्म तत्व है जिसपर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता सहित प्रजनन आदि अनेक क्षमतायें निर्भर करती है, अतः भोजन में पर्याप्त सेलीनियम थायरायड ग्रंथि की कार्यकुशलता के लिए अत्यंत आवश्यक है जो अखरोट,बादाम जैसे सूखे फलों में पाया जाता है I
-थायराइड की दवा लेते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि कोई ऐसा फ़ूड सप्लीमेंट जैसे: केल्शियम सप्लीमेंट्स आदि इसके अवशोषण को बाधित कर सकता है अतः इनके लिए जाने के समय के बीच का अंतराल कम से कम चार घंटे का अवश्य ही होना चाहिए !
-डायबीटिक रोगियों में शुगर कंट्रोल करने के लिए दी जा रही दवा Chromium picolinate थायराईड की दवा के अवशोषण को बाधित कर सकती है अतः उपरोक्त दवा एवं  थायराइड की दवा को लेने के बीच भी कम से कम तीन से चार घंटे का अंतर अवश्य ही होना चाहिए I फ्लेवनोइड्सयुक्त फल सब्जियां एवं चाय हृदय की कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर थायराइड की कार्यकुशलता को घटा देते हैं अतः इनका सेवन नियंत्रित मात्रा में ही किया जाना चाहिए I
नियंत्रित व्यायाम हायपो-थायराईडिज्म एवं हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में आवश्यक माना गया  है I इससे वजन बढ़ना,थकान एवं अवसाद जैसी स्थितियों से बचने में काफी मदद मिलती है I
-थायराइड के रोगियों के लिए धूम्रपान एक जहर की भाँति है, खासकर सिगरेट के धुएं में पाया जानेवाला थायोसायनेट थायराइड ग्रंथि को नुकसान  पहुंचाने वाला एक बड़ा कारण है अतः एक्टिव एवं पेसिव स्मोकिंग से बचना अत्यंत  आवश्यक है I
-कहीं  न्यूक्लीयर -एक्सीडेंट हो जाने पर पोटेशियम-आयोडाईड एक ऐसा सप्लीमेंट है जो कुछ ही घंटों के बाद लोगों में बांटा जाता है ताकि थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर होने की संभावना को टाला जा सके ,रूस में चेर्नोबिल हादसे के बाद पोलेंड में इसे बड़ी मात्रा में लोगों के बीच बांटा गया जबकि यूक्रेन एवं रूस में समय रहते  इसका उतना  वितरण नहीं हो पाया ..इन्हीं कारणों से पोलेंड में चेर्नोबिल हादसे के बाद थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर की समस्या उतनी नहीं देखी गयी I
-फ्लोराइड एक ऐसा नाम जिससे आप सभी परिचित होंगे , हायपर-थायराईडिज्म यानि थायराइड की अतिसक्रियता की स्थिति में इसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है जो प्रभावी ढंग से थायराइड को अंडरएक्टिव बना देता है I आधुनिक फ्लोरिनेटेड संसार में जहां पानी, माउथ-वाश  से लेकर टूथ-पेस्ट तक सब कुछ फ्लोरिनेटेड है इसके  प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है I
-सीलीक डीजीज अर्थात एक ऐसी  बीमारी जिसमें हमारी आंतें गेहूं,जौ आदि में पाए जानेवाले प्रोटीन ग्लूटीन के प्रति असहज व्यवहार करती हैं कि समय रहते पहचान किया जाना  आवश्यक है अन्यथा ऑटोइम्यून हायपो-थायराईडिज्म  उत्पन्न होने की सभावना होती है I
 *क्या केवल टी.एस.एच. का स्तर जानना थायराइड रोगियों की पहचान के लिए आवश्यक है ?
जी नहीं ..यदि आपमें थायराइड ग्रंथि की समस्याओं से  मिलते-जुलते लक्षण दिखाई दे रहे हों तो केवल टी.एस.एच .का टेस्ट ही करवाना आवश्यक नहीं है बल्कि चिकित्सीय परामर्श से एंटी-बाडीज की जांच करानी उतनी ही आवश्यक है I प्राइमरी या माइल्ड हायपो-थायराईडिज्म की स्थिति में ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन टी.4 एवं टी.3 का निर्माण नहीं कर पाती है और इसके प्रत्युतर में पीयूष ग्रंथि अधिक टी.एस.एच.को स्रवित करती है अतः नए रोगी में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य  जबकि टी.एस.एच. का स्तर अधिक पाया जाता है ,रोग की बढी हुई (सीवियर) अवस्था में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य से कम हो जाता है और टी.एस.एच अपने सामान्य रेंज 0.5 and 5 mU/mL में उच्च सीमा पर होता है I अतः चिकित्सक फ्री टी.3,फ्री टी.4,टी.एस.एच एवं टी.पी.ओ. एंटीबाडीज की जांच करवाकर रोग का निदान करते हैं I
थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का उपचार हायपो एवं हायपर-थायराईडिज्म स्थितियों में हार्मोस के स्तर को दवाओं  के द्वारा घटा या बढ़ा कर  किया जाता है I टी.4 एवं टी.3 का सामान्य से उच्च स्तर एवं टी.एस.एच.का न्यूनतम या ना के बराबर का स्तर हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति को बताता है I हायपर-थायराईडिज्म को रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक टेस्ट,थायराइड स्कैन आदि की मदद से भी  जाना जा  सकता है I
* क्या आयुर्वेदिक चिकित्सा की मदद से थायराइड की गड़बड़ी को ठीक किया जा सकता है ?
-आयुर्वेदिक चिकित्सा में कांचनार एवं पुनर्नवा का उपयोग हायपो-थायराईडिज्म की समस्या को कंट्रोल करने में किया जाता है ..इन दोनों का क्वाथ बनाकर तीस मिली की मात्रा में खाली पेट सुबह -शाम लेना लाभप्रद साबित होता है I
-एक गिलास पानी में रात्रीपर्यंत भिगोये हुए धनिये को प्रातः खाली  पेट सेवन करना भी थायराइड सम्बंधित समस्याओं में लाभ देता है I
-एक साफ़ कटोरी  में दो चमच्च पीसी अलसी का पाउडर लें इसमें बराबर मात्रा में पानी मिला लें,इसका पेस्ट  बनाकर और  ग्रंथि के स्थान पर बाहर से लेप करना भी गोयटर  की स्थिति में लाभकारी माना गया है I
-थायराइड से सम्बंधित समस्याओं  में शोधन चिकित्सा का बड़ा ही महत्व है विशेषकर पंचकर्म चिकित्सक के निर्देशन में विरेचन कर्म का प्रभाव लाभकारी है I
-प्रातः काल सात काली मिर्च का एक माह तक निरंतर सेवन एक सप्ताह तक लगातार और फिर सात-सात  दिन छोड़कर एक सप्ताह तक लेना भी थायराइड की समस्या में लाभकारी प्रभाव दर्शाता है I
-त्रिकटु चूर्ण (सौंठ +मरीच +पिप्पली बराबर मात्रा में ) पचास ग्राम लेकर इसमें बहेड़ा चूर्ण पच्चीस ग्राम एवं गोदंती भस्म पांच ग्राम + प्रवाल पिष्टी  पांच  ग्राम इन सबको मिलाकर सुबह शाम शहद के साथ लेना थायराइड की समस्या में फायदेमंद होता है I
-इसके अलावा योग-आसनों एवं प्राणयाम के अभ्यास से भी इस डिसआर्डर को कंट्रोल किया जा सकता है, विशेषकर कपालभाती एवं उज्जाई प्राणयाम का अभ्यास इसमें काफी लाभप्रद सिद्ध होता है I इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-avoid-eating-these-things-they-become-thyroid-4320660-NOR.html

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

जानें थायराइड के बारे में -भाग 1

download.jpgजीवनशैली में  आ रहा परिवर्तन स्वास्थ्य से सम्बंधित नित नयी समस्याओं को सामने ला रहा है I ऐसी ही कई समस्याओं में  से एक समस्या है थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या I  आजकल यह समस्या एक आम समस्या बनकर सामने आ चुकी है I  लगभग पैंतीस की उम्र को पार करते ही महिलाओं में  इस समस्या के पाए जाने का प्रतिशत तीस से पैंतीस तक हो चुका है I आज हम इसी समस्या से सम्बंधित जनोपयोगी जानकारी को आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं :-
क्या है यह थायराइड ग्रंथि ? 
गर्दन के सामने वाले हिस्से में  स्थित तितली के आकार की अन्तःस्रावी ग्रंथि थायराइड ग्रंथि के नाम से जानी जाती है I इस ग्रंथि की खासबात यह है की यह एक हार्मोन  को उत्पन्न करती है जिससे हमारे शरीर  के मेटाबोलिज्म (चयापचय ) की क्रिया नियंत्रित होती है I चयापचय की क्रिया द्वारा ही हमारे शरीर को ऊर्जा को  खपत करने में मदद मिलती है I थायराइड ही एक ऐसी ग्रंथि है जो चयापचय की क्रिया को धीमी या तेज कर सकती है , इन सबके लिए इस ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन  “थायरोक्सिन”  जिम्मेदार होता है I इस  हार्मोन्स  के घटने और बढ़ने के कारण  अनेक लक्षण उत्पन्न होने लगते है I
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण ?
*यदि आपके वजन में अचानक घटने या बढ़ने जैसा परिवर्तन सामने आ रहा हो तो यह थायराइड ग्रंथि से समबन्धित समस्या की और आपका ध्यान दिला सकता है I वजन का अचानक बढ़ जाना“थायरोक्सिन" हार्मोन  की कमी (हायपो-थायराईडिज्म) के कारण उत्पन्न हो सकता है,इसके विपरीत यदि "थायरोक्सिन" की आवश्यक मात्रा से अधिक  उत्पत्ति होने से (हायपर-थायराईडिज्म ) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें अचानक वजन कम होने लग जाता है Iइन दोनों ही स्थितियों में  से हायपो-थायराईडिज्म एक आम समस्या के रूप में  सामने आता है I
*गर्दन के सामनेवाले हिस्से में अचानक सूजन उत्पन्न हो जाना भी आपको थायराइड से सम्बंधित समस्या की और इंगित करता है Iहायपो या  हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में गोएटर (घेघा )बन सकता है I हाँ, कभी-कभी गर्दन में सूजन का कारण थायराइड कैंसर या नोड्यूल्स अथवा ग्रंथि के अन्दर  किसी  लम्प  के बन जाने के कारण भी हो सकता है , कभी-कभी इसका थायराइड ग्रंथि से कोई सम्बन्ध नहीं होता है I
*हृदय गति में अचानक आया परिवर्तन भी थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या के कारण उत्पन्न हो सकता है I हायपो -थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर धीमी हृदयगति होने की शिकायत करते हैं जबकि इसके विपरीत हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित तीव्र हृदयगति से पीड़ित होते हैं I तीव्र हृदयगति के कारण अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है तथा रोगी धड़कन (पाल्पीटेशन ) बढ़ने की समस्या से जूझता है I
*थायराइड ग्रंथि का प्रभाव शरीर के लगभग सभी अंगों पर होता है जिससे व्यक्ति का एनर्जी -लेवल एवं मूड प्रभावित होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर थकान,आलस्य,जोड़ों में दर्द ,सूजन एवं अवसाद जैसे लक्षणों से पीड़ित होता है जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति  घबराहट,बैचैनी,अनिद्रा एवं उत्तेजित रहने जैसे लक्षणों से दो-चार होता है I
*बालों का अचानक झड़ना भी थायराइड हार्मोस के बेलेंस के बिगड़ने की और इंगित करता है,हायपो या हापर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों  में  बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है I
*थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का सीधा सम्बन्ध शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने से होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित रोगी को समान्य से अधिक ठण्ड लगती है जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति को अधिक गर्मी लगती है साथ ही पसीना भी अधिक आता है Iइसके अलावा भी कुछ अन्य लक्षण हैं जिससे  हायपर-थायराईडिज्म को   पहचाना जा सकता है जैसे :त्वचा का रुक्ष होना,हाथों का सुन्न (NUMBNESS ) हो जाना या हाथ-पाँव में चुनचुनाहट (TINGLING )  होना आदि...
इसी प्रकार हायपर-थायराईडिज्म को भी कुछ अतिरिक्त लक्षणों से पहचाना जा सकता है जैसे :मांसपेशियों का कमजोर पड़ना,कम्पन होना ,दस्त लग जाना,देखेने में  परेशानी होना और स्त्रियों में  मासिक-चक्र का अनियमित होना I
*कभी-कभी थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी के कारण  स्त्रियों में मासिक-चक्र बदल जाता है जिससे मेनोपाज का भ्रम उत्पन्न होता है अतः ऐसी स्थिति में रक्त के नमूने से की गयी थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच इस भ्रम को दूर कर देती है I
थायराइड की जांच कब आवश्यक है ?
*प्रत्येक व्यक्ति को पैंतीस वर्ष के बाद प्रत्येक पांच वर्षों में  एक बार स्वयं के थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच अवश्य ही करवा लेनी चाहिए ,खासकर उनलोगों में  जिनमें इस समस्या के होने की संभावना अधिक हो उन्हें अक्सर जांच करवा लेनी चाहिए I हायपो-थायराईडिज्म महिलाओं में 60  की उम्र को पार कर जाने पर अक्सर देखा जाता है ,जबकि हायपर-थायराईडिज्म 60 से ऊपर की महिलाओं और पुरुषों दोनों में  ही पाया जा सकता है I हाँ ,दोनों ही स्थितियों में रोगी  का  पारिवारिक इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू होता है I
images.jpgथायराइड नेक-टेस्ट क्या है ?
आईने में  अपने गर्दन के सामने वाले हिस्से पर अवश्य गौर करें और यदि आपको कुछ अलग सा महसूस हो रहा हो तो चिकित्सक से अवश्य ही परामर्श लें I अपनी गर्दन को पीछे की और झुकायें,थोड़ा पानी निगलें और कॉलर की हड्डी के ऊपर एडम्स-एप्पल से नीचे कोई उभार नजर आये तो इस प्रक्रिया को  एक दो बार दुहरायें और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें I
थायराइड की समस्या को कैसे जाना जाता है ?
यदि आपके चिकित्सक को आपके थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित किसी समस्या से पीड़ित होने का शक उत्पन्न होता है तो आपके रक्त की जांच ही एकमात्र   सरल उपाय है I टी .एस .एच . (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) के स्तर की जांच इस में महत्वपूर्ण मानी जाती है I टी .एस .एच. (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) एक मास्टर हार्मोन  है जो थायराईड ग्रंथि पर अपना नियंत्रण बनाए रखता है I यदि टी. एस .एच .(थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर अधिक है तो इसका मतलब है आपकी थायराइड ग्रंथि कम काम (हायपो-थायराडिज्म ) कर रही है   और इसके विपरीत  टी. एस .एच  (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर कम होना थायराइड ग्रंथि के हायपर-एक्टिव होने (हायपर-थायराईडिज्म) की स्थिति की और इंगित करता  है I चिकित्सक इसके अलावा आपके रक्त में थायराइड हारमोन टी .थ्री .एवं टी .फोर . की जांच भी करा सकते है I
हाशिमोटो-डिजीज के कारण उत्पन्न हायपो -थारायडिज्म क्या है ?
हायपो -थारायडिज्म का एक प्रमुख कारण हाशिमोटो-डिजीज  होता है,यह एक ऑटो-इम्यून-डीजीज है जिसमें
शरीर खुद ही थायराइड ग्रंथि को नष्ट करने लग जाता है जिस कारण  थायराइड ग्रंथि “थायराक्सिन”  का निर्माण नहीं कर पाती है I इस रोग का पारिवारिक इतिहास भी मिलता है I
 हायपो-थायराईडिज्म के अन्य कारण क्या हैं ?
*पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND )  टी. एस .एच (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) को उत्पन्न करती है जो थायराइड की कार्यकुशलता के लिए जिम्मेदार होता है अतः पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND ) के पर्याप्त मात्रा में  टी. एस .एच    (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) उत्पन्न न कर पाने के कारण भी हायपो-थायराईडिज्म उत्पन्न हो सकता है I इसके अलावा थायराइड ग्रंथि पर प्रतिकूल असर डालने वाली दवाएं भी इसका कारण हो सकती हैं I
230px-proptosis_and_lid_retraction_from_graves'_disease.jpgग्रेव्स डीजीज के कारण  उत्पन्न हायपर-थायराईडिज्म क्या है ?
हायपर-थायराईडिज्म का एक प्रमुख कारण ग्रेव्स डीजीज होता हैI यह भी एक ऑटो-इम्यून डीजीज है जो थायराइड ग्रंथि पर हमला करता है  इससे थायराइड ग्रंथि से  “थायराक्सिन” हार्मोन का निर्माण बढ़ जाता है और हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति पैदा हो जाती है जिसकी पहचान व्यक्ति की आँखों को देखकर की जा सकती है जो नेत्रगोलक से बाहर की ओर निकली सी प्रतीत होती हैं I
थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी से क्या उपद्रव पैदा हो सकते हैं ?
इस ग्रंथि की कार्यकुशलता में  आयी गड़बड़ी को जान-बूझकर अनदेखा कर देने पर हायपो -थारायडिज्म की स्थिति में रक्त में  कोलेस्टरोल की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप व्यक्ति के स्ट्रोक या हार्ट-एटैक से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है I कई बार हायपो -थारायडिज्मकी स्थिति में रोगी में  बेहोशी छा  सकती है तथा शरीर का तापक्रम खतरनाक  स्तर तक गिर जाता हैI इसके विपरीत यदि  हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित रोगी की चिकित्सा नहीं की जाय तो रोगी के हृदय रोग से पीड़ित होने के साथ-साथ हड्डियों के भुरभुरे होने का ख़तरा बढ़ जाता है I
(अगले क्रम में हम इस समस्या से बचाव एवं चिकित्सा के पहलूओं पर चर्चा करेंगे …....)

सोमवार, 8 जुलाई 2013

शादी के इफेक्ट और साइड इफेक्ट !

आपने शादी के बारे में एक  जुमला  सुना  होगा की यह वो लड्डू है जो खाए वो भी पछताए और जो न खाए वो भी पछताए !अब इसे ही देख लीजिये शादी-शुदा लोगों के लिए एक अच्छी और बुरी दोनों  खबर है :  
australia-justice-marriage-346728.jpgवैवाहिक जीवन उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है जबकि इसके विपरीत प्रभाव भी सामने आये हैं I  ब्रिंघम यंग विश्वविद्यालय में फेमिली लाइफ पर बीस  सालों से शोध  करने वाले वैज्ञानिक रिक मिलर की मानें तो वैवाहिक जीवन का सुखमय होना व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालता है I    इससे पूर्व के शोध से यह बात साबित हुई थी की पति-पत्नी के बीच उत्पन्न लगातार तनाव का व्यक्ति के मन मस्तिष्क एवं स्वास्थ्य पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता  है ! ये शोध वैज्ञानिकों द्वारा दो दशक में 1681  विवाहित लोगों पर किये गए अध्ययन से सामने आया है और इसे इस प्रकार का अबतक का सबसे बड़ा शोध माना गया है !मिलर और उनके सहयोगियों ने इस शोध को दो तरीके से किया :पहला खुशहाली और संतुष्टि से सम्बंधित था, जबकि दूसरा समस्याओं जैसे पैसों के लिए झगड़े,सास-ससुर को लेकर उत्पन्न मतभेद आदि पर आधारित था, इसके बाद इन उत्तरों को अतिउत्तम के लिए एक अंक तथा निम्न के लिए चार अंक देकर एक स्केल पर मापा गया I  परिणाम के अनुसार चार अंक पाने वालों  का स्वास्थ्य  खराब था, जबकि एक अंक प्राप्त करने वालों का स्वास्थ्य अच्छा था,यह शोध हाल ही में जर्नल आफ मेरेज एंड फेमीली में प्रकाशित हुआ है Iइसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-these-two-things-are-necessary-for-married-life-satisfaction-4314139-PHO.html

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

केदारनाथ में तबाही के वैज्ञानिकों ने खोज निकाले हैं ये खास कारण

6950_588073694570547_569962178_n.jpgइस लेख में हम आपको इसरो एवं उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र द्वारा हाल ही में जारी की गयी सेटेलाईट ईमेज दिखाने का प्रयास कर रहे हैं I इस चित्र से यह बात स्पष्ट होती है कि इस घाटी का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा आपदा के कारण नष्ट हो चुका है I अध्ययन इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि ऐसा केदारघाटी में स्थित चौराबाड़ी एवं अन्य ग्लेशियरों के ऊपर आयी भारी बारिश के कारण हुआ, इस बारिश के कारण एक बाढ़ की स्थिति पैदा हुई, जिसमें  बड़े-बड़े बोल्डर एवं सेंड्स मलवे की शक्ल में बहकर आये और भीषण तबाही का कारण बने I अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है कि भारी बरसात और ग्लेशियर में बर्फ के  पिघलने के बाद पानी ने ग्लेशियर की जड़ में मौजूद मोरेंस (ग्लेशियर की निचली सतह) को बढ़ा दिया। भारी दबाव के साथ पानी आगे बढ़ा तो पलभर में बोल्डर और सैंड्स ने रफ्तार पकड़ ली, सौभाग्य से बीच में एक  बड़ी चढ़ाई(स्लोप ) आ गयी , चढ़ाई (स्लोप) पर  ऊपर चढ़ने में पानी  के साथ इस  मलबे की रफ्तार  कुछ धीमी हो गई,इसके चलते बड़े-बड़े बोल्डर केवल मंदिर और केदार वैली में ही आकर रुक गए,बांकी मलबा केदारवैली को पार करने के बाद काफी कम  गति में आ गया  था, लेकिन इससे आगे के रास्ते में नीचे की ओर फिर  ढाल होने के चलते  दोबारा फिर अपनी  रफ्तार पकड़ ली ,जिसकी वजह से आगे को रामबाड़ा और गौरीकुंड में भारी तबाही हुई I वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि केदार घाटी  में यह मलबा दो ऊँची चढ़ाइयों (स्लोप्स ) से न गुजरता तो तबाही का मंजर कुछ और ही होता  I
इस तबाही से सामने आये सच :
1.सैटेलाइट इमेज में यह बात सामने आई है कि तबाही का यह मलबा ऊपर से केवल एक ही  धारा  में चला था जो कि बाद में दो नई धाराओं में बंट गया,अब यहां पानी का एक नया रास्ता बन गया है!
2.आपदा से पहली तस्वीर में यह साफ है कि पानी एक बहुत पतली धारा में बह रहा है लेकिन हादसे के बाद की तस्वीर में यहां अनेक धाराएं देखी गई हैं!
3.पहले  और  बाद की सेटेलाईट  इमेज से यह पता चला है कि केदारनाथ धाम और आसपास के क्षेत्रों में आपदा से भारी तबाही हुई है!
3. उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से यह बात साफ हो गई है कि दोनों ग्लेशियर में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं हुआ है,तेज बारिश की वजह से यह आपदा आई है!
*साभार :इसरो/उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र 
इससे आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढ़ें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-scientists-have-discovered-that-certain-of-the-catastrophe-in-kedarnath-due-4308572-NOR.html?seq=1

नाम घिंघारू पर हा बड़े ही काम का फल

947158_4985850932269_417196456_n.jpgकहते है कि ईश्वर की बनायी हर रचना का अपना महत्व है और ऐसा ही कुछ हिमालयी क्षेत्र में पायी जानेवाली वनस्पतियों के सन्दर्भ में भी सत्य प्रतीत होता है I इन वनस्पतियों की झाडियों में कुछ ऐसे फल पाए जाते हैं जिन्हें सुन्दरता के साथ-साथ पक्षी भी खाना पसंद करते हैं ऐसे ही कुछ फलों की चर्चा के अंतर्गत हमने आपका परिचय "काफल" एवं "हिसालू" से कराया था,आज इसी  श्रृंखला में एक नयी वनस्पति "घिंघारू" से हम आपका परिचय  कराने जा रहे हैं I
आप सेब के गुणों से तो परिचित ही होंगे लेकिन आज हम आपका परिचय हिमालयी क्षेत्र में पाए जानेवाले छोटे-सेब से कराते हैं ,जी हाँ बिलकुल सेब से मिलते जुलते ही इसके फल 6-8 mm के आकार के होते है I पर्वतीय क्षेत्र में "घिंघारू" के नाम से जाना जाता है !Rosaceae कुल की इस वनस्पति का  लेटिन  नाम Pyrancatha crenulata   है जिसे "हिमालयन-फायर-थोर्न" के नाम से भी जाना जाता है I इसके छोटे-छोटे फल बड़े ही स्वादिष्ट होते हैं, जिसे आप सुन्दर झाड़ियों में  लगे हुए देख सकते हैं I इसे व्हाईट-थोर्न के नाम से भी जाना जाता है  I यह एक ओरनामेंटल झाड़ीदार  लेकिन बडी  उपयोगी वनस्पति है I आइये इसके कुछ  गुणों से आपका परिचय कराते हैं :-
-इसकी पत्तियों से पहाडी हर्बल चाय बनायी जाती है !
- इसके फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त का उपचार किया जाता है !
-इस वनस्पति से प्राप्त मजबूत लकड़ियों का इस्तेमाल लाठी या हॉकी स्टिक बनाने में किया जाता है!
-फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है !
-इस वनस्पति का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है जिससे दांत दर्द में भी लाभ मिलता है !
-इसके फलों से  निकाले गए जूस में रक्त-वर्धक प्रभाव पाया जाता है जिसका लाभ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में काफी आवश्यक माना गया है!
-इसे प्रायः ओर्नामेंटल पौधे के रूप में साज -सजा के लिए 'बोनसाई' के रूप में प्रयोग करने का प्रचलन रहा है !
-इस कुल की अधिकाँश वनस्पतियों के बीजों एवं पत्तों में एक जहरीला द्रव्य 'हायड्रोजन-सायनायड' पाया जाता है जिस कारण इनका स्वाद कडुआ होता है एवं इससमें एक विशेष प्रकार की खुशबू  पायी जाती हैI  अल्प मात्रा में पाए जाने के कारण यह हानिरहित होता है तथा श्वास-प्रश्वास की क्रिया को उद्दीपित करने के साथ ही पाचन क्रिया को भी ठीक करता है I
-घिंघारू के बीजों एवं पत्तियों में पाए जानेवाले जहरीले रसायन  "हायड्रोजन सायनायड" के कैंसररोधी प्रभाव भी देखे गए हैं लेकिन अधिक मात्रा में इनका सेवन श्वासावरोध उत्पन्न कर सकता है  ! इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-AN-yoga-if-cancer-survival-recipe-follow-these-hill-4307344-NOR.html?seq=1

रविवार, 30 जून 2013

कैंसर के इलाज में चमत्कारी असर करता है ये पौधा


कैंसर एक ऐसी भयावह बीमारी जिसके इलाज में वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर रिसर्च जारी है, अभी भी  इसके इलाज कीमोथेरपी  में आने वाला खर्च भी रोगियों को आर्थिक रूप से  मुश्किल में  डाल रहा है। आज हम आपको हिमालयी क्षेत्र  में मिलनेवाली एक ऐसी जड़ी का वीडियो दिखाने जा रहे हैं जिसकी पत्तियों एवं छाल की मदद से अमेरिका कैंसर की दवा पेसलीटेक्सेल बना रहा है। आप यह जानकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे की यह जड़ी भारतवर्ष के हिमालयी क्षेत्र में थुनेर के नाम से जानी जाती है और इससे  स्थानीय आदिवासी लोग थाकिल के नाम से चाय बनाने में प्रयोग  करते रहे हैं।
अब आपको हम एक ऐसा सच बताने जा रहे हैं जो इस जडी से प्राप्त रसायन टेक्सोल के बारे में है।  इसकी पत्तियों से प्राप्त टेक्सोल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लगभग तीन से चार करोड़ रुपये है। केवल इसकी खेती को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ावा देकर लोगों को आर्थिक समुन्नति दी जा सकती है ! वैसे भी आयुर्वेद के जानकार एवं स्थानीय लोग इसकी पत्तियों का प्रयोग गांठों के सूजन आदि को कम करने में सदियों से करते रहे हैं। वीडियो देखने के लिए लिंक पर जाएं।


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आयुर्वेद अनुसार जानें : क्यूँ आती हैं प्राकृतिक आपदाएं ?

3-300x225.jpgउत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में आयी भीषण आपदा ने कई हिस्सों के भूगोल को ही बदल डाला है  I इस त्रासदी से अकाल  मृत्यु को प्राप्त करनेवालों के सही आंकड़े आने अभी बांकी हैं Iआपदा की पूर्व चेतावनी के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम को और अधिक बेहतर किये जाने पर चर्चा हो रही है !आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की आज से हजारों वर्ष पूर्व रचित चरक संहिता में इस प्रकार की आपदा के आने के कारणों पर विस्तृत चर्चा की गयी थी Iचरक संहिता के विमान स्थान   "जनपदोंध्वंसनीय विमान" अध्याय तीन  में इन आपदाओं को पहले ही समझने और इनसे निपटने के तरीकों को विस्तार से उद्धृत किया गया हैI आचार्यों के अनुसार किसी भी जनपद ( क्षेत्र ) में वायु,जल,देश एवं काल भाव स्वरुप में स्थित होते हैं और इनके विकृत होने से समूचे जनपद  में आपदा आने की संभावना होती है Iइसी अध्याय में ऋषि आत्रेय महर्षि अग्निवेश से कहते हैं कि जब मानवप्रज्ञापराध के कारण धर्म को  छोड़कर अधर्म को बढाता है ,तब इस प्रकार की आपदा समस्त जनपद को लील जाती है Iमानव द्वारा जानबूझकर-अनजाने में- धैर्य न होने से या भूलवश किये गए अपराध इस श्रेणी में आते हैं Iइतना ही नहीं आचार्य अग्निवेश ने कहा है की ऐसी स्थितियों में भगवान् भी साथ छोड़ देते हैं (जैसा की केदारनाथ खंड में साफ़ देखा जा सकता है)..ऋतुएं विकृत हो जाती हैं ...अतिवृष्टि या अनावृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है ! देवताओं की भूमि कहे जानेवाले  हिमालयी क्षेत्र में आयी जनपदोध्वंसनीय आपदा हमें स्वयं द्वारा किये गए इन अपराधों की चेतावनी दे रही है! हमने  अपने निहित स्वार्थ के  लिए इन पवित्र क्षेत्रों के वायु,जल,देश एवं काल को दूषित करने में अपनी भागीदारी अर्पित की है जिसके परिणाम आज सामने हैं ! इससे आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-the-major-reason-behind-the-destruction-of-uttarakhand-4301006-NOR.html