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रविवार, 21 जुलाई 2013
थायरायड से बचाव एवं चिकित्सा के उपाय ! Part-2
क्या नहीं खाएं :
-थायरायड से सम्बंधित समस्याओं के लिए सोया एवं इससे बने अन्य पदार्थों को विलेन नंबर 1 माना गया है, आधुनिक शोध इस बात को प्रमाणित भी कर रहे हैं कि लगभग एक तिहाई बच्चे जो ऑटोइम्यून थायरायड से सम्बंधित समस्याओं से पीड़ित होते है उनमें सोया-मिल्क या इससे बने अन्य पदार्थ इस समस्या का एक बड़ा कारण हैं !आप यह जानते होंगे कि सोयाबीन हायड्रोजेनेटेडफैट एवं पालीअनसेचुरेटेड ऑयल का सबसे बड़ा स्रोत है !
-फूलगोभी,ब्रोकली एवं पत्ता गोभी स्वयं में "गूट्रोजन" पाये जाने के कारण थायरायड हार्मोन्स के प्रोडक्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं अतः इस समस्या से ग्रसित रोगी को भोजन में इन्हें लेने से बचना चाहिए I
क्या खाएं :
-आयोडीन :थायराइड की समस्या में आयोडीन की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण होती है इसी न्युट्रीयंट पर थायरायड की कार्यकुशलता निर्भर करती है I पूरी दुनिया में ऑटोइम्यून कारणों से उत्पन्न होनेवाली थायरायड की समस्या को छोड़कर बांकी अधिकाँश रोगियों में आयोडीन की कमी इस समस्या का मूल कारण है, हालाकि आयोडाईज्ड नमक एवं प्रोसेस्ड भोज्य पदार्थों के कारण आज आयोडीन की कमी से उत्पन्न होनेवाली इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है I
-विटामिन डी : ऑटोइम्यून समस्या के कारण कम थायरोक्सिन बनना (हाशिमोटोडीजिज) एवं अधिक थायरोक्सिन बनना (ग्रेव्स डिजीज) दोनों ही स्थितियों में विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन आवश्यक होता है !अतः वैसे भोज्य पदार्थ जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन -डी पाया जाता हो जैसे :मछली,अंडे,दूध एवं मशरूम का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए और यदि विटामिन -डी की मात्रा आवश्यक मात्रा से कम है तो इसे सप्लीमेंट के रूप में चिकित्सक के परामर्श से लेना चाहिए !
-सेलीनियम :थायराइड ग्रंथि में सेलीनियम उच्च सांद्रता में पाया जाता है, इसे थायराइड-सुपर-न्युट्रीएंट भी कहा जाता है, यह थायराइड से सम्बंधित अधिकाँश एन्जायम्स का एक प्रमुख घटक द्रव्य है ,इससे थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता नियंत्रित होती है I सेलेनियम एक ऐसा आवश्यक सूक्ष्म तत्व है जिसपर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता सहित प्रजनन आदि अनेक क्षमतायें निर्भर करती है, अतः भोजन में पर्याप्त सेलीनियम थायरायड ग्रंथि की कार्यकुशलता के लिए अत्यंत आवश्यक है जो अखरोट,बादाम जैसे सूखे फलों में पाया जाता है I
-थायराइड की दवा लेते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि कोई ऐसा फ़ूड सप्लीमेंट जैसे: केल्शियम सप्लीमेंट्स आदि इसके अवशोषण को बाधित कर सकता है अतः इनके लिए जाने के समय के बीच का अंतराल कम से कम चार घंटे का अवश्य ही होना चाहिए !
-डायबीटिक रोगियों में शुगर कंट्रोल करने के लिए दी जा रही दवा Chromium picolinate थायराईड की दवा के अवशोषण को बाधित कर सकती है अतः उपरोक्त दवा एवं थायराइड की दवा को लेने के बीच भी कम से कम तीन से चार घंटे का अंतर अवश्य ही होना चाहिए I फ्लेवनोइड्सयुक्त फल सब्जियां एवं चाय हृदय की कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर थायराइड की कार्यकुशलता को घटा देते हैं अतः इनका सेवन नियंत्रित मात्रा में ही किया जाना चाहिए I
* नियंत्रित व्यायाम हायपो-थायराईडिज्म एवं हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में आवश्यक माना गया है I इससे वजन बढ़ना,थकान एवं अवसाद जैसी स्थितियों से बचने में काफी मदद मिलती है I
-थायराइड के रोगियों के लिए धूम्रपान एक जहर की भाँति है, खासकर सिगरेट के धुएं में पाया जानेवाला थायोसायनेट थायराइड ग्रंथि को नुकसान पहुंचाने वाला एक बड़ा कारण है अतः एक्टिव एवं पेसिव स्मोकिंग से बचना अत्यंत आवश्यक है I
-कहीं न्यूक्लीयर -एक्सीडेंट हो जाने पर पोटेशियम-आयोडाईड एक ऐसा सप्लीमेंट है जो कुछ ही घंटों के बाद लोगों में बांटा जाता है ताकि थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर होने की संभावना को टाला जा सके ,रूस में चेर्नोबिल हादसे के बाद पोलेंड में इसे बड़ी मात्रा में लोगों के बीच बांटा गया जबकि यूक्रेन एवं रूस में समय रहते इसका उतना वितरण नहीं हो पाया ..इन्हीं कारणों से पोलेंड में चेर्नोबिल हादसे के बाद थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर की समस्या उतनी नहीं देखी गयी I
-फ्लोराइड एक ऐसा नाम जिससे आप सभी परिचित होंगे , हायपर-थायराईडिज्म यानि थायराइड की अतिसक्रियता की स्थिति में इसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है जो प्रभावी ढंग से थायराइड को अंडरएक्टिव बना देता है I आधुनिक फ्लोरिनेटेड संसार में जहां पानी, माउथ-वाश से लेकर टूथ-पेस्ट तक सब कुछ फ्लोरिनेटेड है इसके प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है I
-सीलीक डीजीज अर्थात एक ऐसी बीमारी जिसमें हमारी आंतें गेहूं,जौ आदि में पाए जानेवाले प्रोटीन ग्लूटीन के प्रति असहज व्यवहार करती हैं कि समय रहते पहचान किया जाना आवश्यक है अन्यथा ऑटोइम्यून हायपो-थायराईडिज्म उत्पन्न होने की सभावना होती है I
*क्या केवल टी.एस.एच. का स्तर जानना थायराइड रोगियों की पहचान के लिए आवश्यक है ?
जी नहीं ..यदि आपमें थायराइड ग्रंथि की समस्याओं से मिलते-जुलते लक्षण दिखाई दे रहे हों तो केवल टी.एस.एच .का टेस्ट ही करवाना आवश्यक नहीं है बल्कि चिकित्सीय परामर्श से एंटी-बाडीज की जांच करानी उतनी ही आवश्यक है I प्राइमरी या माइल्ड हायपो-थायराईडिज्म की स्थिति में ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन टी.4 एवं टी.3 का निर्माण नहीं कर पाती है और इसके प्रत्युतर में पीयूष ग्रंथि अधिक टी.एस.एच.को स्रवित करती है अतः नए रोगी में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य जबकि टी.एस.एच. का स्तर अधिक पाया जाता है ,रोग की बढी हुई (सीवियर) अवस्था में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य से कम हो जाता है और टी.एस.एच अपने सामान्य रेंज 0.5 and 5 mU/mL में उच्च सीमा पर होता है I अतः चिकित्सक फ्री टी.3,फ्री टी.4,टी.एस.एच एवं टी.पी.ओ. एंटीबाडीज की जांच करवाकर रोग का निदान करते हैं I
थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का उपचार हायपो एवं हायपर-थायराईडिज्म स्थितियों में हार्मोस के स्तर को दवाओं के द्वारा घटा या बढ़ा कर किया जाता है I टी.4 एवं टी.3 का सामान्य से उच्च स्तर एवं टी.एस.एच.का न्यूनतम या ना के बराबर का स्तर हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति को बताता है I हायपर-थायराईडिज्म को रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक टेस्ट,थायराइड स्कैन आदि की मदद से भी जाना जा सकता है I
* क्या आयुर्वेदिक चिकित्सा की मदद से थायराइड की गड़बड़ी को ठीक किया जा सकता है ?
-आयुर्वेदिक चिकित्सा में कांचनार एवं पुनर्नवा का उपयोग हायपो-थायराईडिज्म की समस्या को कंट्रोल करने में किया जाता है ..इन दोनों का क्वाथ बनाकर तीस मिली की मात्रा में खाली पेट सुबह -शाम लेना लाभप्रद साबित होता है I
-एक गिलास पानी में रात्रीपर्यंत भिगोये हुए धनिये को प्रातः खाली पेट सेवन करना भी थायराइड सम्बंधित समस्याओं में लाभ देता है I
-एक साफ़ कटोरी में दो चमच्च पीसी अलसी का पाउडर लें इसमें बराबर मात्रा में पानी मिला लें,इसका पेस्ट बनाकर और ग्रंथि के स्थान पर बाहर से लेप करना भी गोयटर की स्थिति में लाभकारी माना गया है I
-थायराइड से सम्बंधित समस्याओं में शोधन चिकित्सा का बड़ा ही महत्व है विशेषकर पंचकर्म चिकित्सक के निर्देशन में विरेचन कर्म का प्रभाव लाभकारी है I
-प्रातः काल सात काली मिर्च का एक माह तक निरंतर सेवन एक सप्ताह तक लगातार और फिर सात-सात दिन छोड़कर एक सप्ताह तक लेना भी थायराइड की समस्या में लाभकारी प्रभाव दर्शाता है I
-त्रिकटु चूर्ण (सौंठ +मरीच +पिप्पली बराबर मात्रा में ) पचास ग्राम लेकर इसमें बहेड़ा चूर्ण पच्चीस ग्राम एवं गोदंती भस्म पांच ग्राम + प्रवाल पिष्टी पांच ग्राम इन सबको मिलाकर सुबह शाम शहद के साथ लेना थायराइड की समस्या में फायदेमंद होता है I
-इसके अलावा योग-आसनों एवं प्राणयाम के अभ्यास से भी इस डिसआर्डर को कंट्रोल किया जा सकता है, विशेषकर कपालभाती एवं उज्जाई प्राणयाम का अभ्यास इसमें काफी लाभप्रद सिद्ध होता है I इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-avoid-eating-these-things-they-become-thyroid-4320660-NOR.html
गुरुवार, 11 जुलाई 2013
जानें थायराइड के बारे में -भाग 1
क्या है यह थायराइड ग्रंथि ?
गर्दन के सामने वाले हिस्से में स्थित तितली के आकार की अन्तःस्रावी ग्रंथि थायराइड ग्रंथि के नाम से जानी जाती है I इस ग्रंथि की खासबात यह है की यह एक हार्मोन को उत्पन्न करती है जिससे हमारे शरीर के मेटाबोलिज्म (चयापचय ) की क्रिया नियंत्रित होती है I चयापचय की क्रिया द्वारा ही हमारे शरीर को ऊर्जा को खपत करने में मदद मिलती है I थायराइड ही एक ऐसी ग्रंथि है जो चयापचय की क्रिया को धीमी या तेज कर सकती है , इन सबके लिए इस ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन “थायरोक्सिन” जिम्मेदार होता है I इस हार्मोन्स के घटने और बढ़ने के कारण अनेक लक्षण उत्पन्न होने लगते है I
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण ?
*यदि आपके वजन में अचानक घटने या बढ़ने जैसा परिवर्तन सामने आ रहा हो तो यह थायराइड ग्रंथि से समबन्धित समस्या की और आपका ध्यान दिला सकता है I वजन का अचानक बढ़ जाना“थायरोक्सिन" हार्मोन की कमी (हायपो-थायराईडिज्म) के कारण उत्पन्न हो सकता है,इसके विपरीत यदि "थायरोक्सिन" की आवश्यक मात्रा से अधिक उत्पत्ति होने से (हायपर-थायराईडिज्म ) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें अचानक वजन कम होने लग जाता है Iइन दोनों ही स्थितियों में से हायपो-थायराईडिज्म एक आम समस्या के रूप में सामने आता है I
*गर्दन के सामनेवाले हिस्से में अचानक सूजन उत्पन्न हो जाना भी आपको थायराइड से सम्बंधित समस्या की और इंगित करता है Iहायपो या हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में गोएटर (घेघा )बन सकता है I हाँ, कभी-कभी गर्दन में सूजन का कारण थायराइड कैंसर या नोड्यूल्स अथवा ग्रंथि के अन्दर किसी लम्प के बन जाने के कारण भी हो सकता है , कभी-कभी इसका थायराइड ग्रंथि से कोई सम्बन्ध नहीं होता है I
*हृदय गति में अचानक आया परिवर्तन भी थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या के कारण उत्पन्न हो सकता है I हायपो -थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर धीमी हृदयगति होने की शिकायत करते हैं जबकि इसके विपरीत हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित तीव्र हृदयगति से पीड़ित होते हैं I तीव्र हृदयगति के कारण अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है तथा रोगी धड़कन (पाल्पीटेशन ) बढ़ने की समस्या से जूझता है I
*थायराइड ग्रंथि का प्रभाव शरीर के लगभग सभी अंगों पर होता है जिससे व्यक्ति का एनर्जी -लेवल एवं मूड प्रभावित होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर थकान,आलस्य,जोड़ों में दर्द ,सूजन एवं अवसाद जैसे लक्षणों से पीड़ित होता है जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति घबराहट,बैचैनी,अनिद्रा एवं उत्तेजित रहने जैसे लक्षणों से दो-चार होता है I
*बालों का अचानक झड़ना भी थायराइड हार्मोस के बेलेंस के बिगड़ने की और इंगित करता है,हायपो या हापर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है I
*थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का सीधा सम्बन्ध शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने से होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित रोगी को समान्य से अधिक ठण्ड लगती है जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति को अधिक गर्मी लगती है साथ ही पसीना भी अधिक आता है Iइसके अलावा भी कुछ अन्य लक्षण हैं जिससे हायपर-थायराईडिज्म को पहचाना जा सकता है जैसे :त्वचा का रुक्ष होना,हाथों का सुन्न (NUMBNESS ) हो जाना या हाथ-पाँव में चुनचुनाहट (TINGLING ) होना आदि...
इसी प्रकार हायपर-थायराईडिज्म को भी कुछ अतिरिक्त लक्षणों से पहचाना जा सकता है जैसे :मांसपेशियों का कमजोर पड़ना,कम्पन होना ,दस्त लग जाना,देखेने में परेशानी होना और स्त्रियों में मासिक-चक्र का अनियमित होना I
*कभी-कभी थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी के कारण स्त्रियों में मासिक-चक्र बदल जाता है जिससे मेनोपाज का भ्रम उत्पन्न होता है अतः ऐसी स्थिति में रक्त के नमूने से की गयी थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच इस भ्रम को दूर कर देती है I
थायराइड की जांच कब आवश्यक है ?
*प्रत्येक व्यक्ति को पैंतीस वर्ष के बाद प्रत्येक पांच वर्षों में एक बार स्वयं के थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच अवश्य ही करवा लेनी चाहिए ,खासकर उनलोगों में जिनमें इस समस्या के होने की संभावना अधिक हो उन्हें अक्सर जांच करवा लेनी चाहिए I हायपो-थायराईडिज्म महिलाओं में 60 की उम्र को पार कर जाने पर अक्सर देखा जाता है ,जबकि हायपर-थायराईडिज्म 60 से ऊपर की महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही पाया जा सकता है I हाँ ,दोनों ही स्थितियों में रोगी का पारिवारिक इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू होता है I
आईने में अपने गर्दन के सामने वाले हिस्से पर अवश्य गौर करें और यदि आपको कुछ अलग सा महसूस हो रहा हो तो चिकित्सक से अवश्य ही परामर्श लें I अपनी गर्दन को पीछे की और झुकायें,थोड़ा पानी निगलें और कॉलर की हड्डी के ऊपर एडम्स-एप्पल से नीचे कोई उभार नजर आये तो इस प्रक्रिया को एक दो बार दुहरायें और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें I
थायराइड की समस्या को कैसे जाना जाता है ?
यदि आपके चिकित्सक को आपके थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित किसी समस्या से पीड़ित होने का शक उत्पन्न होता है तो आपके रक्त की जांच ही एकमात्र सरल उपाय है I टी .एस .एच . (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) के स्तर की जांच इस में महत्वपूर्ण मानी जाती है I टी .एस .एच. (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) एक मास्टर हार्मोन है जो थायराईड ग्रंथि पर अपना नियंत्रण बनाए रखता है I यदि टी. एस .एच .(थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर अधिक है तो इसका मतलब है आपकी थायराइड ग्रंथि कम काम (हायपो-थायराडिज्म ) कर रही है और इसके विपरीत टी. एस .एच (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर कम होना थायराइड ग्रंथि के हायपर-एक्टिव होने (हायपर-थायराईडिज्म) की स्थिति की और इंगित करता है I चिकित्सक इसके अलावा आपके रक्त में थायराइड हारमोन टी .थ्री .एवं टी .फोर . की जांच भी करा सकते है I
हाशिमोटो-डिजीज के कारण उत्पन्न हायपो -थारायडिज्म क्या है ?
हायपो -थारायडिज्म का एक प्रमुख कारण हाशिमोटो-डिजीज होता है,यह एक ऑटो-इम्यून-डीजीज है जिसमें
शरीर खुद ही थायराइड ग्रंथि को नष्ट करने लग जाता है जिस कारण थायराइड ग्रंथि “थायराक्सिन” का निर्माण नहीं कर पाती है I इस रोग का पारिवारिक इतिहास भी मिलता है I
हायपो-थायराईडिज्म के अन्य कारण क्या हैं ?
*पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND ) टी. एस .एच (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) को उत्पन्न करती है जो थायराइड की कार्यकुशलता के लिए जिम्मेदार होता है अतः पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND ) के पर्याप्त मात्रा में टी. एस .एच (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) उत्पन्न न कर पाने के कारण भी हायपो-थायराईडिज्म उत्पन्न हो सकता है I इसके अलावा थायराइड ग्रंथि पर प्रतिकूल असर डालने वाली दवाएं भी इसका कारण हो सकती हैं I
हायपर-थायराईडिज्म का एक प्रमुख कारण ग्रेव्स डीजीज होता हैI यह भी एक ऑटो-इम्यून डीजीज है जो थायराइड ग्रंथि पर हमला करता है इससे थायराइड ग्रंथि से “थायराक्सिन” हार्मोन का निर्माण बढ़ जाता है और हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति पैदा हो जाती है जिसकी पहचान व्यक्ति की आँखों को देखकर की जा सकती है जो नेत्रगोलक से बाहर की ओर निकली सी प्रतीत होती हैं I
थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी से क्या उपद्रव पैदा हो सकते हैं ?
इस ग्रंथि की कार्यकुशलता में आयी गड़बड़ी को जान-बूझकर अनदेखा कर देने पर हायपो -थारायडिज्म की स्थिति में रक्त में कोलेस्टरोल की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप व्यक्ति के स्ट्रोक या हार्ट-एटैक से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है I कई बार हायपो -थारायडिज्मकी स्थिति में रोगी में बेहोशी छा सकती है तथा शरीर का तापक्रम खतरनाक स्तर तक गिर जाता हैI इसके विपरीत यदि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित रोगी की चिकित्सा नहीं की जाय तो रोगी के हृदय रोग से पीड़ित होने के साथ-साथ हड्डियों के भुरभुरे होने का ख़तरा बढ़ जाता है I
(अगले क्रम में हम इस समस्या से बचाव एवं चिकित्सा के पहलूओं पर चर्चा करेंगे …....)
इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-sympotoms-of-thyroid-4315137-NOR.html?fb_action_ids=10200145014096301&fb_action_types=og.likes&fb_source=timeline_og&action_object_map=%7B%2210200145014096301%22%3A312476558888348%7D&action_type_map=%7B%2210200145014096301%22%3A%22og.likes%22%7D&action_ref_map=%5B%5D
सोमवार, 8 जुलाई 2013
शादी के इफेक्ट और साइड इफेक्ट !
आपने शादी के बारे में एक जुमला सुना होगा की यह वो लड्डू है जो खाए वो भी पछताए और जो न खाए वो भी पछताए !अब इसे ही देख लीजिये शादी-शुदा लोगों के लिए एक अच्छी और बुरी दोनों खबर है :
वैवाहिक जीवन उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है जबकि इसके विपरीत प्रभाव भी सामने आये हैं I ब्रिंघम यंग विश्वविद्यालय में फेमिली लाइफ पर बीस सालों से शोध करने वाले वैज्ञानिक रिक मिलर की मानें तो वैवाहिक जीवन का सुखमय होना व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालता है I इससे पूर्व के शोध से यह बात साबित हुई थी की पति-पत्नी के बीच उत्पन्न लगातार तनाव का व्यक्ति के मन मस्तिष्क एवं स्वास्थ्य पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है ! ये शोध वैज्ञानिकों द्वारा दो दशक में 1681 विवाहित लोगों पर किये गए अध्ययन से सामने आया है और इसे इस प्रकार का अबतक का सबसे बड़ा शोध माना गया है !मिलर और उनके सहयोगियों ने इस शोध को दो तरीके से किया :पहला खुशहाली और संतुष्टि से सम्बंधित था, जबकि दूसरा समस्याओं जैसे पैसों के लिए झगड़े,सास-ससुर को लेकर उत्पन्न मतभेद आदि पर आधारित था, इसके बाद इन उत्तरों को अतिउत्तम के लिए एक अंक तथा निम्न के लिए चार अंक देकर एक स्केल पर मापा गया I परिणाम के अनुसार चार अंक पाने वालों का स्वास्थ्य खराब था, जबकि एक अंक प्राप्त करने वालों का स्वास्थ्य अच्छा था,यह शोध हाल ही में जर्नल आफ मेरेज एंड फेमीली में प्रकाशित हुआ है Iइसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-these-two-things-are-necessary-for-married-life-satisfaction-4314139-PHO.html
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