बड़े ही दुःख का विषय है ,कि एक तरफ सरकारें संपूर्ण स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त करने का सपना संजोती है तो ,दूसरी तरफ शराब के व्यापार को बढ़ावा देकर राजस्व प्राप्ति का दंभ भरती हैIदेश के कई हिस्सों की युवा पीढ़ी , इस नशे के चंगुल में अपनी जवानी को बर्बाद कर रही हैIहालत यह है कि एक तरफ तो स्वास्थ्य की सम्पूर्णता के लिए करोडो रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन साथ ही साथ कई घरों में चूल्हे भी नहीं जल पा रहे हैं Iआये दिन ऐसे रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है ,चिकित्सक होने के नाते हमें ऐसे रोगियों से नित्य दोचार होना पड़ रहा है ,जिनकी बेहाल पत्नियां अपने नाकारा शराबी पतियों को लेकर आती हैं,आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?.हमें लगता है ,सरकार में शामिल सफेदपोश जानबूझकर जनता को इसके चंगुल से मुक्ति दिलाना नहीं चाहते ,क्योंकि नशे का सेवन कराकर उन्हें चुनाव के समय अपने पक्ष में करना ज्यादा आसान रहता हैIऐसे लोग समाज को क्या दे पायेंगे ?क्या वे भ्रष्टाचार को नहीं बढ़ाएंगे? कई बार तो ऐसे लोग पैसे से अधिक शराब को प्राथमिकता देते हैं तथा किसी भी प्रकार के नाजायज कृत्यों को अंजाम देने में नहीं चूकते हैं I इसके पीछे माफियाओं के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता ,जिन्होंने प्रकृति को तो बर्बाद किया है, साथ ही साथ मानव शरीर को खोखला करने से भी परहेज नहीं हैIइसपर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब मानव द्वारा पैदा किये गए कई घातक सौगातों में, यह भी एक होगाIअभी भी इस दिशा में सोचने की सख्त जरूरत है कि मानव शरीर एवं प्रकृति के साथ ज्यादती कर पाया गया राजस्व एवं ऐसा व्यापार जिससे मानवता का नुकसान हो उसे किस हद तक बढ़ावा दिया जाना चाहिएI
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें