हल्दी का प्रयोग प्राचीन काल से ही हमारे दादी एवं नानी द्वारा दूध में मिलाकर देकर होता था , जिससे घाव जल्दी भर जाता था , यहाँ तक चोट एवं मोच में भी हल्दी के लेप का प्रयोग आपको शायद याद ही होगा। ऐसे ही हल्दी का प्रयोग आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सक क्षार-सूत्र जैसी विधाओं में कर रहे हैं। कहीं कट या तो भी हल्दी का लेप अत्यंत लाभकारी है, ऐसी है हल्दी लाख दुखों की एक दवा है।
हल्दी जिसे हरिद्रा,कांचनी,पीता आदि नामों से जाना जाता है ,आयुर्वेद का विश्व को अमृत तुल्य औषधि के रूप में वरदान है। आयुर्वेद की पुस्तकों में इसे सबसे अच्छा एंटीसेप्टिक तो माना गया ही है, साथ ही यह एक ऐसी औषधि है ,जो त्वचा रोगों से लेकर एलर्जी जैसे इम्यून सिस्टम के रोगों को भी ठीक करती है। यूं ही नहीं इसे हमारी रसोई में एक सम्मानित स्थान मिला है। क्या मजाल है ,जो हल्दी के बिना सब्जी या दाल बन जाय। केवल रसोई ही क्यों शादी-व्याह में उबटन में भी इसका प्रयोग सर्वविदित है।
हाल में ही यू.सी.एल.ए .जोंसन कैंसर केंद्र में हुए एक शोध के अनुसार भारतीय मसालों में प्रयुक्त होने वाली हल्दी में पाया जानेवाला 'कर्कुमिन' मनुष्य क़ी लार ग्रंथि में पाए जानेवाले कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धी का सिग्नल देनेवाले रास्ते को ही बंद कर देता है,जिससे नाक और गले में विकसित होने वाली कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रुक जाती है।
हाल में ही यू.सी.एल.ए .जोंसन कैंसर केंद्र में हुए एक शोध के अनुसार भारतीय मसालों में प्रयुक्त होने वाली हल्दी में पाया जानेवाला 'कर्कुमिन' मनुष्य क़ी लार ग्रंथि में पाए जानेवाले कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धी का सिग्नल देनेवाले रास्ते को ही बंद कर देता है,जिससे नाक और गले में विकसित होने वाली कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रुक जाती है।
इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लंक पर क्लिक करें :
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें