आयुर्वेद में रोगों के उत्त्पति को किसी न किसी कथा से जोड़कर बताया गया है,जैसे रोगों में प्रथम ज्वर क़ी उत्पत्ति दक्ष के द्वारा शिव क़ी अवमानना के कारण देवी पार्वती के द्वारा हवन कुण्ड में प्रवेश के कारण बनी स्थिति से उत्पन्न शिव के ताप से बालक वीरभद्र के रूप में हुई ढ्ढ ठीक इसी प्रकार रोगों के समूह 'यक्ष्मा ' की उत्त्पति के पीछे भी एक रोचक कथा है और एक सन्देश भी।
दक्षप्रजापति क़ी 28 कन्याएं थी जिनसे चन्द्रमा ने विवाह किया था, आज के युग में एक पत्नी से दाम्पत्य जीवन अगर सफल हो, तो इसे उदाहरण के तौर पर माना जाता है ,परन्तु उस युग में 28 पत्नियों के साथ दाम्पत्य जीवन सफलता से कैसे निभाया जाता होगा और निश्चय ही यह कठिन होगा ,और हुआ भी कुछ ऐसा ही चन्द्रमा क़ी अधिक कामासक्ति केवल रोहिणी से थी, वे अन्य पत्नियों से प्रेम और आसक्ति का उतना भाव नहीं रख पाते थे, लेकिन इतनी पत्नियों के साथ सम्बन्ध रखना भी निश्चय ही एक कठिन कार्य था , जिसकी परवाह शायद नक्षत्रों के राजा ने नहीं क़ी, और जिसके कारण उनके शरीर के शुक्र का क्षय हो गया,अब क्षय होने के कारण संभवत: वे अपनी अन्य 27 स्त्रियों से उपेक्षा का भाव रहने लगे थे , और उन सभी ने अपनी इस पीड़ा को पिता दक्ष प्रजापति के सम्मुख रखा और अपनी उपेक्षा को उनके सामने विस्तार से बताया। अब होना क्या था , दक्ष प्रजापति इस व्यथा को जान गुस्से में आ गए और उनके मुख से क्रोध रूपी श्वास निकलने लगा, क्योंकि चन्द्रमा ने उनकी 28 पुत्रियों के साथ विवाह रचाया था और 27 पुत्रियों के साथ अन्याय किया था,अपनी सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार न करनेवाले चन्द्रमा को उनके श्वसुर दक्ष प्रजापति ने श्राप दे डाला जिसकारण रजोगुण से युक्त निर्बल चन्द्रमा दक्ष प्रजापति के क्रोध के कारण रोगों के समूह 'यक्ष्मा 'से ग्रसित हो गए , कहा जाता है कि़ कामासक्त चन्द्रमा अपने से बलवान श्वसुर से पराभूत होकर कांतिहीन हो गए, तब अपनी इस दशा को देख वे अन्य देवताओं के साथ दक्ष की शरण में गए, अन्य देवताओं के साथ अपनी शरण में आये निर्बल एवं कांतिहीन चन्द्रमा को अपने किये का एहसास होता देख दक्ष ने अश्विनी कुमारों को चन्द्रमा की चिकित्सा करने का निर्देश दिया।
जिनकी चिकित्सा द्वारा चन्द्रमा ओज से युक्त होकर रोग से मुक्त हो गए और चमकने लगे । कहा जाता है कि़ चन्द्रमा की चिकित्सा के दौरान अश्विनी कुमारों की हुंकार से यह यक्ष्मा भय से मृत्यु लोक में आ गया और मनुष्यों को पीडि़त करने लगा। वैसे इस कथा से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि़ अत्यधिक कामांध होना भी रोगों का कारण होता है, जिसका एक उदाहरण आज के युग में पाँव पसार रहा एड्स जैसा रोग है I इसलिए एकल वैवाहिक संबंधों को ईमानदारी से निभाना आज के युग की आवश्यकता है,केवल यौन संबंधों को स्थापित करने के उद्देश्य से बहुगामी होना निश्चित ही रोगों की उत्त्पति का कारण बनेगा। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yogamoon-curse-2472210.html
दक्षप्रजापति क़ी 28 कन्याएं थी जिनसे चन्द्रमा ने विवाह किया था, आज के युग में एक पत्नी से दाम्पत्य जीवन अगर सफल हो, तो इसे उदाहरण के तौर पर माना जाता है ,परन्तु उस युग में 28 पत्नियों के साथ दाम्पत्य जीवन सफलता से कैसे निभाया जाता होगा और निश्चय ही यह कठिन होगा ,और हुआ भी कुछ ऐसा ही चन्द्रमा क़ी अधिक कामासक्ति केवल रोहिणी से थी, वे अन्य पत्नियों से प्रेम और आसक्ति का उतना भाव नहीं रख पाते थे, लेकिन इतनी पत्नियों के साथ सम्बन्ध रखना भी निश्चय ही एक कठिन कार्य था , जिसकी परवाह शायद नक्षत्रों के राजा ने नहीं क़ी, और जिसके कारण उनके शरीर के शुक्र का क्षय हो गया,अब क्षय होने के कारण संभवत: वे अपनी अन्य 27 स्त्रियों से उपेक्षा का भाव रहने लगे थे , और उन सभी ने अपनी इस पीड़ा को पिता दक्ष प्रजापति के सम्मुख रखा और अपनी उपेक्षा को उनके सामने विस्तार से बताया। अब होना क्या था , दक्ष प्रजापति इस व्यथा को जान गुस्से में आ गए और उनके मुख से क्रोध रूपी श्वास निकलने लगा, क्योंकि चन्द्रमा ने उनकी 28 पुत्रियों के साथ विवाह रचाया था और 27 पुत्रियों के साथ अन्याय किया था,अपनी सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार न करनेवाले चन्द्रमा को उनके श्वसुर दक्ष प्रजापति ने श्राप दे डाला जिसकारण रजोगुण से युक्त निर्बल चन्द्रमा दक्ष प्रजापति के क्रोध के कारण रोगों के समूह 'यक्ष्मा 'से ग्रसित हो गए , कहा जाता है कि़ कामासक्त चन्द्रमा अपने से बलवान श्वसुर से पराभूत होकर कांतिहीन हो गए, तब अपनी इस दशा को देख वे अन्य देवताओं के साथ दक्ष की शरण में गए, अन्य देवताओं के साथ अपनी शरण में आये निर्बल एवं कांतिहीन चन्द्रमा को अपने किये का एहसास होता देख दक्ष ने अश्विनी कुमारों को चन्द्रमा की चिकित्सा करने का निर्देश दिया।
जिनकी चिकित्सा द्वारा चन्द्रमा ओज से युक्त होकर रोग से मुक्त हो गए और चमकने लगे । कहा जाता है कि़ चन्द्रमा की चिकित्सा के दौरान अश्विनी कुमारों की हुंकार से यह यक्ष्मा भय से मृत्यु लोक में आ गया और मनुष्यों को पीडि़त करने लगा। वैसे इस कथा से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि़ अत्यधिक कामांध होना भी रोगों का कारण होता है, जिसका एक उदाहरण आज के युग में पाँव पसार रहा एड्स जैसा रोग है I इसलिए एकल वैवाहिक संबंधों को ईमानदारी से निभाना आज के युग की आवश्यकता है,केवल यौन संबंधों को स्थापित करने के उद्देश्य से बहुगामी होना निश्चित ही रोगों की उत्त्पति का कारण बनेगा। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yogamoon-curse-2472210.html
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