आयु का विज्ञानं जिसे आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है.सबसे प्राचीन एवं प्रभावी विज्ञान हैIइसकी शुरूवात तब हुई जब यह सृष्टी अस्तित्व में आयी,अर्थात यह विज्ञान आज के सभी विज्ञानों में प्राचीन हैI जैसे ब्रह्माण्ड कि उत्पति शाश्वत सत्य है तथा प्राणियों की उत्पति क्रमिक विकास का एक परिणाम है, जो आगे भी चलता रहेगा,ठीक उसी तरह एक निश्चित समय के बाद नष्ट होना भी एक नियती है, अर्थात जो भी वर्त्तमान में है ,वो पूर्व के विकास का परिणाम है, तथा एक निश्चित काल के बाद उसे नष्ट होना है Iडार्विन ने भी कहा था,अस्तित्व के लिए होनेवाले संघर्ष में जो फिट होगा वही आगे बढेगा,ये बात प्रख्यात भौतिक वैज्ञानिक स्टीव हौकिंग्स के नजरिये से भी सिद्ध होती हैIमानव शरीर भी क्रमिक विकास का एक परिणाम हैI आदिमानव से लेकर आज के मानव का अस्तीत्व भी इन सभी लम्बे समय का वर्तमान हैIचूँकि वो विकास के झंझावातों में फिट रहा अतः आज इस रूप में हैI मानव शरीर को भी एक निश्चित समय में नष्ट होना है, अतः विमारियां एक कारण मात्र हैं वो पूर्व में भी थी ,आज भी हैं ,और आगे भी रहेंगी Iइसलिए रोगमुक्त सृष्टी की कल्पना करना सृष्टी के नियमों के विपरीत है, हाँ जीवन को हितायु,सुखायु एवं दीर्घायु की प्राप्ति हेतु फिट रखना अपने आप में एक चुनौती हैI इस चुनौती में हर वो साधन जो आपको स्वस्थ रखने में मददगार हों अपनाने चाहिए Iविज्ञान भी किसी विषय का विशेष ज्ञान है,जो प्रत्यक्ष प्रमाण की कसौटी पर खरा हो,परन्तु अप्रत्यक्ष प्रमाण की कसौटी पर फिट को अवैज्ञानिक कहना भी गलत होगाIयह हो सकता है,जिसे हम आज प्रमाणिक न मान रहे हों वह हमारे नजरिये की एक भूल हो,जो कालांतर में प्रत्यक्ष प्रमाणों से सिद्ध होIआज योग एवं आयुर्वेद संपूर्ण विश्व में अपनाया जा रहा हैIइसके पीछे कई वर्षों का स्वर्णिम इतिहास रहा है,हाँ यह बात सत्य है, कि सोने की चिड़िया से सपेरों के देश तक का सफ़र अब पुनः इसके पूर्व के इतिहास की पुनरावृति मात्र हैI
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