
आयुर्वेद एक ऐसा विज्ञान जो सम्पूर्ण चिकित्सा के अंगों के कारण अपनी विशेषता स्थापित करता आ रहा है I बच्चों के रोगों के लिए जैसे आज बाल रोग विशेषज्ञ होते हैं, जिन्हें पीडीयाट्रिक्स स्पेशीयालिस्ट के रूप में जाना जाता है, वैसे ही पूर्व में भी आयुर्वेद में ऐसे विशेषज्ञ होते थे ,और इनके लिए अलग से एक शास्त्र था ,जो काश्यप संहिता कहलाता था, यह संहिता आज भी भारत में खंडित रूप में उपलब्ध है I इस संहिता को मूल रूप से सामने लाने वाले आचार्य मारीच काश्यप थे I वैसे यह सत्य है क़ी विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे शास्त्रों को खंडित और नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोडी थी, पर कुछ ऐसे आचार्य एवं गुरुओं क़ी दूरदृष्टी के कारण ये संहिताएँ आज भी हमारे समक्ष उपलब्ध हैं I आयुर्वेद के महान ग्रन्थ चरक संहिता को यदि आचार्य द्रढबल ने संरंक्षित कर प्रतिसंस्कृत न किया होता, तो शायद आज काय-चिकित्सा न होती ,ऐसे ही एक बिभूती जिन्हें शास्त्रों को संकलित करने का शौक था उनका नाम था ,राजगुरु हेमराज शर्मा हमने शायद ही कभी उनका नाम सुना हो ,लेकिन नेपाल के इस राजगुरु को प्राचीन पांडुलिपियों को संग्रहीत करने का एक शौक था ,उनके इसी शौक के कारण आज बाल रोगों क़ी संहिता काश्यप हमारे समक्ष खंडित रूप में ही सही,उपलब्ध तो है I ताडपत्र में पांडुलिपि के रूप में राजगुरु हेमराज शर्मा द्वारा सरंक्षित इस संहिता की आकृति २१.५ एवं २.५ के प्रत्येक पृष्ठ में सूत्रबद्द ६ पंक्तियां हैं ,प्रारम्भ का २९ वां पृष्ठ लुप्त है I ईसा पूर्व रचित इस संहिता को ग्रन्थ रूप में निबद्ध करने का श्रेय ऋचिक पुत्र वृद्ध जीवक को जाता है ,जिसे बाद में आचार्य वात्स्य ने प्रतिसंस्कृत किया ,जो "इति वृद्धजीवकिये तंत्रे कौमारभृत्ये वात्स्यप्रतिसंस्कृते" से स्पष्ट होता है I
राजगुरु हेमराज शर्मा का योगदान इसलिए भी अधिक हो जाता है क़ि आज आयुर्वेद क़ी काश्यप संहिता न होती तो कौमारभृत्य नामक विभाग न होता I
राजगुरु हेमराज शर्मा के बारे में आयुष दर्पण के नेपाल स्थित डॉ .राम मणि भंडारी ने कुछ रोचक जानकारियाँ ऊपलब्ध कराई हैं ,जो निम्न हैं :विक्रमी संवत १९३५ में काठमांडू में पैदा हुए कश्यप गोत्रीय हेमराज शर्मा का जन्म नेपाल के राजपरिवार में हुआ था I तत्कालीन नेपाल में राणा वंश का शासन था I हेमराज शर्मा ने अपना अध्ययन बनारस में पंडित गंगाधर शास्त्री के साथ किया था,संस्कृत के विद्वान् होने के वावजूद वे पुरातत्वविद भी थे I उनमें प्राचीन ग्रंथों के संकलन क़ी गंभीर रूचि थी , यह कहना अतिश्योक्ति न होगी ,क़ि उनके तत्कालीन ग्रंथों के संग्रह एशिया में ही बेजोड़ थे I स्वयं धन खर्च कर भी वे अप्राप्य प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह करते थे, उन्होंने स्वयं द्वारा एक पुस्तकालय भी निर्मित कराया था , उन्होंने आयुर्वेद के बाल रोगों से सम्बंधित ग्रन्थ काश्यप संहिता को संस्कृत में सम्पादित किया जो आज हमारे समक्ष उपलब्ध है I
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