आज आयुष पद्धति के बारे में चिकित्सा जगत में चर्चाओं का बाजार गर्म है,कोई इसे मुख्य चिकित्सा पद्धति का दर्जा दिलाने क़ी बात करते हैं,तो कोई अधिकार सम्पन्न बनाने क़ी बात करते हैं,कोई आयुष चिकित्सकों के संगठन क़ी बात करते हैं,तो कोई नीमा एवं आई.एम.ए. से अपनी लडाई क़ी बात करते हैंIकुछ पुरानी परम्पराओं क़ी कमीयों क़ी बात करते हैं I इनसब बातों में एक बात जो खो जाती हैं, वो है आयुष के मूल अर्थ क़ी, आयुष शब्द पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल विहारी वाजपयी द्वारा इंडियन सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन एंड होमीयोपैथी शब्द को छोटा कर आयुष नाम देने से प्रारम्भ हुआ I वैसे आयुष का अर्थ आयुष्य से है, और यह किसी चिकित्सा पद्धति विशेष के लिए न होकर जीवन को बचाने एवं रोगमुक्त समाज के निर्माण एवं आयुष्य को सुखायु के रूप में प्राप्त करने से हैIआचार्य चरक के दर्शन को यदि देखें तो उन्होंने कहा है,क़ी मानव को रोगमुक्त रखने हेतु प्रयुक्त किये जानेवाले संपूर्ण द्रव्य औषधि हैं Iयदि चिकित्सक मात्रा ,काल एवं प्रयोग क़ी प्रायोगिक जानकारी रखकर उक्त द्रव्य का प्रयोग चिकित्सा हेतु करता है, तो वह द्रव्य अमृत तुल्य औषधि होगी,अन्यथा वह विष का कार्य करेगीIकोई भी चिकित्सा पद्धती पूर्ण नहीं हो सकती,जैसे क़ी ज्ञान संपूर्ण नहीं हो सकताI.ज्ञान अनवरत शोध क़ी परिणति से प्राप्त अमृत है, तथा इसे कोई भी कहीं से प्राप्त कर सकता हैIआधुनिक चिकित्सा विज्ञान जिसे आज एलॉपथी कहते हैं, वह भी प्राचीन परम्पराओं से कालक्रम में निरंतर शोध क़ी परिणति के उपरान्त प्राप्त एक विज्ञान हैंI.आयुष पद्धति का महत्वपूर्ण भाग होमीओपैथी के जनक हेनिमेंन का व्यक्तित्व भी हमें काफी कुछ बतलाता हैIएलोपेथिक चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने सूक्ष्म सिद्धांतों से होमोपैथी नामक चिकित्सा पद्धति को विकसित कियाIभले ही आज ब्रिटेन जैसे देशों में इसे प्लेसबो ट्रीटमेंट नाम दिया जा रहा हो, परन्तु इस प्रभाव के द्वारा भी दु:खी व्यक्ती को लाभ तो मिलता ही हैIआवश्यकता आयुर्वेद,होमियोपैथ ,यूनानी,सिद्ध,नेचुरोपैथी ,योग आदि के प्रभावों का वैज्ञानिक विश्लेषण कर अपने सीमाओं के अंदर हर पद्धति के विकास तथा सामंजस्य क़ी, तभी मानवता का कल्याण होगा.तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक विज्ञान के रूप में चिकित्सा जगत का विस्तार संभव होगा.
डॉ नवीन जोशी
आलेख में महत्वपूर्ण जानकारियां हैं
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