यूरोपीयन यूनियंन द्वारा हाल में ही लाये गए "ट्रेडीशनल हर्बल मेडिसिनल प्रोडक्ट ड़ायरेक्टेव "का विरोध शुरू हो गया हैIनए निर्देशों के तहत यूरोप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों की बिक्री अब काफी कठिन होगीIइसलिए अब स्वयंसेवी संस्थाओं ने इसका विरोध भी प्रारंभ कर दिया हैI वैसे यह एक दुर्भाग्यपूर्ण कदम है जिससे भारत की अमृत तुल्य जड़ीबूटियों के लाभ से करोड़ों लोग वंचित हो जायेंगे Iइस अव्यापारिक कदम से भारत की हर्बल इंडस्ट्री को बहुत बड़ा नुक्सान होगाIपहले सुपरबग का भय दिखा कर भारत के मेडिकल टूरिस्म को प्रभावित करने का प्रयास और अब "ट्रेडीशनल हर्बल मेडिसिनल प्रोडक्ट ड़ायरेक्टेव "Iयह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा हैIस्वयंसेवी संस्थाओं ने भारत द्वारा इस मामले को डब्लू .टी. ओ. के समक्ष उठाने की मांग की हैI कोई भी देश अपनी जडीबूटियों को मानकीकरण के स्तर पर खरा उतारकर, दुनिया में कहीं भी बेचने के लिए स्वंतत्र होना चाहिएI यूरोपीयन यूनियंन द्वारा इन दवाओं के बढ़ाते साइड इफेक्ट के कारण यह प्रतिबन्ध लगाया गया है Iयह प्रतिबन्ध आयुर्वेदिक एवं सभी जडी बूटियों की बिक्री पर लागू होगा I वैसे किस व्यक्ति को कौन सा इलाज लेना है, यह उसका स्वतंत्र अधिकार है ,परन्तु दवाओं पर सीधे प्रतिबन्ध लगाकर उनके लाभ से दुनिया को वंचित करना भी न्यायसंगत नहीं है I.वैसे इस बात को नकारा नहीं जा सकता है ,कि यदि किसी भी जडीबुटी का प्रयोग यदि दवा के रूप में हो रहा है ,तो उसका साइड इफेक्ट होना तय है,बेहतर यह होता की इनपर और अधिक क्लिनिकल ट्रायल कराये जाते,और विश्व स्तर पर इन्हें स्थापित करने हेतु ठोस सबूत पेश किये जाते I एम् .एच .आर.ए. द्वारा ब्रिटेन में कराये गए शोध के अनुसार वर्ष २००९ में २६ % लोगों ने जडी बूटियों एवं हर्बल दवाओं का प्रयोग किया Iइसका मतलब है, उन्होंने इन दवाओं को सुरक्षित विकल्प के तौर पर चुनाI केवल बिना जांचे परखे सीधे इनके असुरक्षित होने का भय दिखाना एवं सुरक्षित सिद्ध करने की दिशा में प्रयास न किया जाना न्यायसंगत नहीं होगा I
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