स्त्री को हमारे समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है ,हो भी क्यों न ? कहीं मां,बहिन,बेटी ,बहु और पत्नी के रूप में उसकी सेवाएं हमारे जीवन के निर्माण से लेकर उन्नति के शिखर तक पहुंचाने में प्राप्त होती है। आयुर्वेद में भी स्त्री के महत्व क़ी महिमा बतायी गयी है, आप जानते हैं कि आज के युग में स्त्री पुरुषों के बराबरी पर खडी है ,और कई मामलों में तो एक कदम आगे भी,जबकि शारीरिक रूप से पुरुषों एवं स्त्रियों में कुछ असमानताएं भी हैं ,खासकर जननागों क़ी असमानता।
ये असमानता महिलाओं क़ी शारीरिक,मानसिक एवं सामाजिक पहलूओं को थोड़ा बहुत तो प्रभावित तो करती ही हैं। इन बातों का एहसास उनके करीब जाकर ही होता है ,इसका कारण महिलाओं में नियमित होनेवाला 'मासिक- चक्र ' या माहवारी है ,जो उन्हें हर महीने गर्भधारण के लिए योग्य बनाता है,आयुर्वेद में स्त्री की इस अवस्था को रज:स्वला अवस्था कहते हैं , इसके प्रारम्भ होने क़ी उम्र 12 से 13 वर्ष होती है, जिसे 'मीनार्क कहा जाता है ,औसतन यह आठ से सोलह वर्ष के बीच हो सकता है,ठीक इसी प्रकार महिलाओं में इस चक्र के बंद होने क़ी आयु 45 से 55 वर्ष है, जिसे 'मेनोपोज़ ' कहा जाता है , अर्थात इस उम्र के बाद गर्भाधान क़ी प्रक्रिया नहीं हो सकती है ढ्ढ कुछ महिलाओं में यह 45 वर्ष से पूर्व भी हो सकती है ,इसे प्री- मेच्युर मेनोपोज़कहा जाता है।
मासिक चक्र क़ी अवधि महिलाओं में अलग- अलग होती है, कुछ में यह छोटी अवधि का होता है, तो कुछ में लम्बी अवधि का,वैसे औसतन यह 21 से 35 दिनों के बीच होता है, इसके प्रारम्भ होने के पूर्व कुछ लक्षण आते हैं,जिन्हें 'प्री-मेंसटूरल लक्षण ' के नाम से जाना जाता है, इनमे सिरदर्द,कमरदर्द,पूरे शरीर में सामान्य पीड़ा खासकर पेट के निचले हिस्से में तथा जोड़ों में दर्द ,स्तनों में असहजता का एहसास,पेट फूलना,कभी -कभी अँगुलियों,टखनों एवं पिंडलियों में पीड़ा क़ी अनुभूति होती है ढ्ढ इसी प्रकार मूड में परिवर्तन,तनाव,चिडचिडापन,अवसाद ,किसी काम में मन न लगना,भूलने क़ी प्रवृति,थकान आदि लक्षण देखे जाते हैं। डॉ.केथेरिन डाल्टन ने महिलाओं के 'मासिक -चक्र ' पर एक लंबा शोध किया है तथा यह निष्कर्ष दिया है ,कि़ महिलाओं में आत्महत्या,क्राइम,शराब सेवन,दुर्घटना आदि मासिक- चक्र के प्रारम्भ होने के एक दिन पूर्व (पारामेंस्टूरम) अवधि में देखे जाते हैं, कुछ देशों में तो महिलाओं को इस अवधि में टेम्पररी इन्सेनीटी नाम से कानूनी मान्यता मिली हुई है। यह बात सत्य है कि़ कुछ महिलाओं में ही ये लक्षण कठिनाई पैदा करते हैं तथा अधिकांश महिलाएं इसे हर माह उत्पन्न होने वाला एक सामान्य लक्षण मानकर अपने आप को संयत कर लेती हैं,लेकिन कुल मिलाकर इसका मानसिक प्रभाव तो पड़ता ही है।
ये तो रही इसके शारीरिक और मानसिक पहलूओं क़ी बात अब जानें कैसे इससे होनेवाली असहजता से जूझें :-
-यह कोई रोग की अवस्था नहीं है,अपितु महिलाओं के शरीर क़ी स्वाभाविक अवस्था है,अत: जबतक लक्षण कठिनाई उत्पन्न न करें तबतक दवाओं के अनावश्यक सेवन से बचें।
-अधिकांश महिलाओं को इसकी पूर्ण जानकारी ही नहीं होती है ,तथा शारीरिक स्थितियों के प्रति सहनशीलता का अभाव भी स्थिति को प्रभावित करता है,अर्थात अगर यह समझ में आ जाय कि़ सिरदर्द,कमरदर्द,चिडचिडापन आदि लक्षण 'मासिक -चक्र ' के कारण उत्पन्न हो रहे हैं तथा यह किसी अन्य बीमारी के कारण नहीं तो समस्या काफी हद तक कम हो जाती है।
-अगर महिलाएं अपनी 'मेंसटूरल-प्रोफाइल ' क़ी ठीक- ठीक जानकारी रखें ,तो सकारात्मक सोच से भी अपने व्यवहार को संयमित किया जा सकता है।
-यदि शरीर में पानी के रूकने के कारण सूजन आदि जैसे लक्षण आ रहे हों तो , 'पारामेंस्टूरम अवधिÓ में नमक और पानी की मात्रा थोड़ा कम कर दें ,इसके साथ ही ऐसे फलों का सेवन करें जो प्राकृतिक रूप से मूत्रल ( डाईयूरेटिक) होते हैं जैसे :खीरा,ककडी,लौकी,तरबूज आदि ढ्ढ
-भोजन में अतिरिक्त नमक क़ी मात्रा को कम करते हुए पोटेशियम बहुल फल जैसे: केला,संतरे एवं टमाटर का सेवन करें !
-यह बात सत्य है कि़ हम क्या आहार लेते हैं, इसका सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक लक्षणों पर पड़ता है,अत: सन्तुलित आहार एवं प्रचुर मात्रा में फल सब्जियों का प्रयोग कब्ज जैसे लक्षणों को दूर करता है।
-आयुर्वेद में भी स्त्री को रज:स्वला की अवस्था में विशेष सावधानी एवं सफाई तथा सदाचार का पालन करने तथा पुरुषों को इस अवस्था में यौन सम्बन्ध स्थापित न करने का निर्देश दिया गया है।
-कुछ आयुर्वेदिक दवाएं जैसे :गोक्षुरचूर्ण,पुष्यानुगचूर्ण,दशमूलारिष्ट,पुष्करमूलचूर्ण ,लोध्रचूर्ण,नवायस लौह,धात्रीलौह,मंडूरभस्म,सुपारीपाक आदि का चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग इसके सामान्य लक्षणों को तो कम करता ही है,साथ ही मानसिक एवं शारीरिक रूप से संबल बनाता है।
-योग के आसनों एवं प्राणायाम का नियमित अभ्यास तनाव को दूर कर मानसिक मजबूती प्रदान करता है।
अत: हर स्त्री को महीने के उन दिनों में सामान्य एवं संयत भोजन ,सदवृत्त पालन के साथ- साथ सफाई का विशेष खय़ाल रखते हुए ,सामान्य लक्षणों के प्रति सामान्य व्यवहार एवं असामान्य लक्षणों के होने पर प्राकृतिक औषधियों से उपचार लेना चाहिए।इसी आर्टिकल को पदाहने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/yoga-how-do-women-cope-with-the-uncomfortable-days-2388150.html
ये असमानता महिलाओं क़ी शारीरिक,मानसिक एवं सामाजिक पहलूओं को थोड़ा बहुत तो प्रभावित तो करती ही हैं। इन बातों का एहसास उनके करीब जाकर ही होता है ,इसका कारण महिलाओं में नियमित होनेवाला 'मासिक- चक्र ' या माहवारी है ,जो उन्हें हर महीने गर्भधारण के लिए योग्य बनाता है,आयुर्वेद में स्त्री की इस अवस्था को रज:स्वला अवस्था कहते हैं , इसके प्रारम्भ होने क़ी उम्र 12 से 13 वर्ष होती है, जिसे 'मीनार्क कहा जाता है ,औसतन यह आठ से सोलह वर्ष के बीच हो सकता है,ठीक इसी प्रकार महिलाओं में इस चक्र के बंद होने क़ी आयु 45 से 55 वर्ष है, जिसे 'मेनोपोज़ ' कहा जाता है , अर्थात इस उम्र के बाद गर्भाधान क़ी प्रक्रिया नहीं हो सकती है ढ्ढ कुछ महिलाओं में यह 45 वर्ष से पूर्व भी हो सकती है ,इसे प्री- मेच्युर मेनोपोज़कहा जाता है।
मासिक चक्र क़ी अवधि महिलाओं में अलग- अलग होती है, कुछ में यह छोटी अवधि का होता है, तो कुछ में लम्बी अवधि का,वैसे औसतन यह 21 से 35 दिनों के बीच होता है, इसके प्रारम्भ होने के पूर्व कुछ लक्षण आते हैं,जिन्हें 'प्री-मेंसटूरल लक्षण ' के नाम से जाना जाता है, इनमे सिरदर्द,कमरदर्द,पूरे शरीर में सामान्य पीड़ा खासकर पेट के निचले हिस्से में तथा जोड़ों में दर्द ,स्तनों में असहजता का एहसास,पेट फूलना,कभी -कभी अँगुलियों,टखनों एवं पिंडलियों में पीड़ा क़ी अनुभूति होती है ढ्ढ इसी प्रकार मूड में परिवर्तन,तनाव,चिडचिडापन,अवसाद ,किसी काम में मन न लगना,भूलने क़ी प्रवृति,थकान आदि लक्षण देखे जाते हैं। डॉ.केथेरिन डाल्टन ने महिलाओं के 'मासिक -चक्र ' पर एक लंबा शोध किया है तथा यह निष्कर्ष दिया है ,कि़ महिलाओं में आत्महत्या,क्राइम,शराब सेवन,दुर्घटना आदि मासिक- चक्र के प्रारम्भ होने के एक दिन पूर्व (पारामेंस्टूरम) अवधि में देखे जाते हैं, कुछ देशों में तो महिलाओं को इस अवधि में टेम्पररी इन्सेनीटी नाम से कानूनी मान्यता मिली हुई है। यह बात सत्य है कि़ कुछ महिलाओं में ही ये लक्षण कठिनाई पैदा करते हैं तथा अधिकांश महिलाएं इसे हर माह उत्पन्न होने वाला एक सामान्य लक्षण मानकर अपने आप को संयत कर लेती हैं,लेकिन कुल मिलाकर इसका मानसिक प्रभाव तो पड़ता ही है।
ये तो रही इसके शारीरिक और मानसिक पहलूओं क़ी बात अब जानें कैसे इससे होनेवाली असहजता से जूझें :-
-यह कोई रोग की अवस्था नहीं है,अपितु महिलाओं के शरीर क़ी स्वाभाविक अवस्था है,अत: जबतक लक्षण कठिनाई उत्पन्न न करें तबतक दवाओं के अनावश्यक सेवन से बचें।
-अधिकांश महिलाओं को इसकी पूर्ण जानकारी ही नहीं होती है ,तथा शारीरिक स्थितियों के प्रति सहनशीलता का अभाव भी स्थिति को प्रभावित करता है,अर्थात अगर यह समझ में आ जाय कि़ सिरदर्द,कमरदर्द,चिडचिडापन आदि लक्षण 'मासिक -चक्र ' के कारण उत्पन्न हो रहे हैं तथा यह किसी अन्य बीमारी के कारण नहीं तो समस्या काफी हद तक कम हो जाती है।
-अगर महिलाएं अपनी 'मेंसटूरल-प्रोफाइल ' क़ी ठीक- ठीक जानकारी रखें ,तो सकारात्मक सोच से भी अपने व्यवहार को संयमित किया जा सकता है।
-यदि शरीर में पानी के रूकने के कारण सूजन आदि जैसे लक्षण आ रहे हों तो , 'पारामेंस्टूरम अवधिÓ में नमक और पानी की मात्रा थोड़ा कम कर दें ,इसके साथ ही ऐसे फलों का सेवन करें जो प्राकृतिक रूप से मूत्रल ( डाईयूरेटिक) होते हैं जैसे :खीरा,ककडी,लौकी,तरबूज आदि ढ्ढ
-भोजन में अतिरिक्त नमक क़ी मात्रा को कम करते हुए पोटेशियम बहुल फल जैसे: केला,संतरे एवं टमाटर का सेवन करें !
-यह बात सत्य है कि़ हम क्या आहार लेते हैं, इसका सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक लक्षणों पर पड़ता है,अत: सन्तुलित आहार एवं प्रचुर मात्रा में फल सब्जियों का प्रयोग कब्ज जैसे लक्षणों को दूर करता है।
-आयुर्वेद में भी स्त्री को रज:स्वला की अवस्था में विशेष सावधानी एवं सफाई तथा सदाचार का पालन करने तथा पुरुषों को इस अवस्था में यौन सम्बन्ध स्थापित न करने का निर्देश दिया गया है।
-कुछ आयुर्वेदिक दवाएं जैसे :गोक्षुरचूर्ण,पुष्यानुगचूर्ण,दशमूलारिष्ट,पुष्करमूलचूर्ण ,लोध्रचूर्ण,नवायस लौह,धात्रीलौह,मंडूरभस्म,सुपारीपाक आदि का चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग इसके सामान्य लक्षणों को तो कम करता ही है,साथ ही मानसिक एवं शारीरिक रूप से संबल बनाता है।
-योग के आसनों एवं प्राणायाम का नियमित अभ्यास तनाव को दूर कर मानसिक मजबूती प्रदान करता है।
अत: हर स्त्री को महीने के उन दिनों में सामान्य एवं संयत भोजन ,सदवृत्त पालन के साथ- साथ सफाई का विशेष खय़ाल रखते हुए ,सामान्य लक्षणों के प्रति सामान्य व्यवहार एवं असामान्य लक्षणों के होने पर प्राकृतिक औषधियों से उपचार लेना चाहिए।इसी आर्टिकल को पदाहने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/yoga-how-do-women-cope-with-the-uncomfortable-days-2388150.html
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