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रविवार, 21 जुलाई 2013

थायरायड से बचाव एवं चिकित्सा के उपाय ! Part-2

thyroid1.jpgथायरायड ग्रंथि एवं इससे होनेवाली समस्याओं के लक्षणों आदि की संक्षिप्त जानकारी मैंने इस श्रृंखला के पहले लेख में देने का प्रयास किया था ,आइये  अब जानें थायरायड की समस्या से बचाव एवं सम्बंधित चिकित्सोपयोगी जानकारी :-
क्या नहीं खाएं :
-थायरायड से सम्बंधित समस्याओं के लिए सोया एवं इससे बने अन्य पदार्थों को विलेन नंबर 1 माना गया है, आधुनिक शोध इस बात को प्रमाणित भी कर रहे हैं कि लगभग एक तिहाई बच्चे जो ऑटोइम्यून थायरायड से सम्बंधित समस्याओं से पीड़ित होते है उनमें सोया-मिल्क या इससे बने अन्य पदार्थ इस समस्या का एक बड़ा कारण हैं !आप यह जानते होंगे कि सोयाबीन हायड्रोजेनेटेडफैट एवं पालीअनसेचुरेटेड ऑयल का सबसे बड़ा स्रोत है !
-फूलगोभी,ब्रोकली एवं पत्ता गोभी स्वयं में "गूट्रोजन"  पाये जाने के कारण थायरायड हार्मोन्स के प्रोडक्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं अतः इस समस्या से ग्रसित रोगी को भोजन में इन्हें लेने से बचना चाहिए I 
क्या खाएं :
-आयोडीन :थायराइड की समस्या में आयोडीन की  भूमिका अतिमहत्वपूर्ण होती है इसी न्युट्रीयंट पर थायरायड की कार्यकुशलता निर्भर करती है I पूरी दुनिया में ऑटोइम्यून कारणों से उत्पन्न होनेवाली थायरायड की समस्या को छोड़कर बांकी अधिकाँश रोगियों में आयोडीन की कमी इस समस्या का मूल कारण है, हालाकि आयोडाईज्ड नमक एवं प्रोसेस्ड भोज्य पदार्थों के कारण आज आयोडीन की कमी से उत्पन्न होनेवाली इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है I
-विटामिन डी :  ऑटोइम्यून समस्या के कारण कम थायरोक्सिन बनना (हाशिमोटोडीजिज)  एवं अधिक थायरोक्सिन बनना (ग्रेव्स डिजीज) दोनों ही स्थितियों में विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन आवश्यक होता है !अतः वैसे भोज्य पदार्थ जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन -डी पाया जाता हो जैसे :मछली,अंडे,दूध एवं मशरूम का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए और यदि विटामिन -डी की मात्रा आवश्यक मात्रा से कम है तो इसे सप्लीमेंट के रूप में चिकित्सक के परामर्श से लेना चाहिए !
-सेलीनियम :थायराइड ग्रंथि में सेलीनियम उच्च  सांद्रता में पाया जाता है, इसे थायराइड-सुपर-न्युट्रीएंट भी कहा जाता है, यह थायराइड से सम्बंधित अधिकाँश एन्जायम्स का एक प्रमुख घटक द्रव्य है ,इससे थायराइड  ग्रंथि की कार्यकुशलता नियंत्रित होती है I सेलेनियम एक ऐसा आवश्यक सूक्ष्म तत्व है जिसपर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता सहित प्रजनन आदि अनेक क्षमतायें निर्भर करती है, अतः भोजन में पर्याप्त सेलीनियम थायरायड ग्रंथि की कार्यकुशलता के लिए अत्यंत आवश्यक है जो अखरोट,बादाम जैसे सूखे फलों में पाया जाता है I
-थायराइड की दवा लेते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि कोई ऐसा फ़ूड सप्लीमेंट जैसे: केल्शियम सप्लीमेंट्स आदि इसके अवशोषण को बाधित कर सकता है अतः इनके लिए जाने के समय के बीच का अंतराल कम से कम चार घंटे का अवश्य ही होना चाहिए !
-डायबीटिक रोगियों में शुगर कंट्रोल करने के लिए दी जा रही दवा Chromium picolinate थायराईड की दवा के अवशोषण को बाधित कर सकती है अतः उपरोक्त दवा एवं  थायराइड की दवा को लेने के बीच भी कम से कम तीन से चार घंटे का अंतर अवश्य ही होना चाहिए I फ्लेवनोइड्सयुक्त फल सब्जियां एवं चाय हृदय की कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर थायराइड की कार्यकुशलता को घटा देते हैं अतः इनका सेवन नियंत्रित मात्रा में ही किया जाना चाहिए I
नियंत्रित व्यायाम हायपो-थायराईडिज्म एवं हायपर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में आवश्यक माना गया  है I इससे वजन बढ़ना,थकान एवं अवसाद जैसी स्थितियों से बचने में काफी मदद मिलती है I
-थायराइड के रोगियों के लिए धूम्रपान एक जहर की भाँति है, खासकर सिगरेट के धुएं में पाया जानेवाला थायोसायनेट थायराइड ग्रंथि को नुकसान  पहुंचाने वाला एक बड़ा कारण है अतः एक्टिव एवं पेसिव स्मोकिंग से बचना अत्यंत  आवश्यक है I
-कहीं  न्यूक्लीयर -एक्सीडेंट हो जाने पर पोटेशियम-आयोडाईड एक ऐसा सप्लीमेंट है जो कुछ ही घंटों के बाद लोगों में बांटा जाता है ताकि थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर होने की संभावना को टाला जा सके ,रूस में चेर्नोबिल हादसे के बाद पोलेंड में इसे बड़ी मात्रा में लोगों के बीच बांटा गया जबकि यूक्रेन एवं रूस में समय रहते  इसका उतना  वितरण नहीं हो पाया ..इन्हीं कारणों से पोलेंड में चेर्नोबिल हादसे के बाद थायराइड की गडबडी एवं थायराईड कैंसर की समस्या उतनी नहीं देखी गयी I
-फ्लोराइड एक ऐसा नाम जिससे आप सभी परिचित होंगे , हायपर-थायराईडिज्म यानि थायराइड की अतिसक्रियता की स्थिति में इसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है जो प्रभावी ढंग से थायराइड को अंडरएक्टिव बना देता है I आधुनिक फ्लोरिनेटेड संसार में जहां पानी, माउथ-वाश  से लेकर टूथ-पेस्ट तक सब कुछ फ्लोरिनेटेड है इसके  प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है I
-सीलीक डीजीज अर्थात एक ऐसी  बीमारी जिसमें हमारी आंतें गेहूं,जौ आदि में पाए जानेवाले प्रोटीन ग्लूटीन के प्रति असहज व्यवहार करती हैं कि समय रहते पहचान किया जाना  आवश्यक है अन्यथा ऑटोइम्यून हायपो-थायराईडिज्म  उत्पन्न होने की सभावना होती है I
 *क्या केवल टी.एस.एच. का स्तर जानना थायराइड रोगियों की पहचान के लिए आवश्यक है ?
जी नहीं ..यदि आपमें थायराइड ग्रंथि की समस्याओं से  मिलते-जुलते लक्षण दिखाई दे रहे हों तो केवल टी.एस.एच .का टेस्ट ही करवाना आवश्यक नहीं है बल्कि चिकित्सीय परामर्श से एंटी-बाडीज की जांच करानी उतनी ही आवश्यक है I प्राइमरी या माइल्ड हायपो-थायराईडिज्म की स्थिति में ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन टी.4 एवं टी.3 का निर्माण नहीं कर पाती है और इसके प्रत्युतर में पीयूष ग्रंथि अधिक टी.एस.एच.को स्रवित करती है अतः नए रोगी में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य  जबकि टी.एस.एच. का स्तर अधिक पाया जाता है ,रोग की बढी हुई (सीवियर) अवस्था में टी.4 एवं टी.3 का स्तर सामान्य से कम हो जाता है और टी.एस.एच अपने सामान्य रेंज 0.5 and 5 mU/mL में उच्च सीमा पर होता है I अतः चिकित्सक फ्री टी.3,फ्री टी.4,टी.एस.एच एवं टी.पी.ओ. एंटीबाडीज की जांच करवाकर रोग का निदान करते हैं I
थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का उपचार हायपो एवं हायपर-थायराईडिज्म स्थितियों में हार्मोस के स्तर को दवाओं  के द्वारा घटा या बढ़ा कर  किया जाता है I टी.4 एवं टी.3 का सामान्य से उच्च स्तर एवं टी.एस.एच.का न्यूनतम या ना के बराबर का स्तर हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति को बताता है I हायपर-थायराईडिज्म को रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक टेस्ट,थायराइड स्कैन आदि की मदद से भी  जाना जा  सकता है I
* क्या आयुर्वेदिक चिकित्सा की मदद से थायराइड की गड़बड़ी को ठीक किया जा सकता है ?
-आयुर्वेदिक चिकित्सा में कांचनार एवं पुनर्नवा का उपयोग हायपो-थायराईडिज्म की समस्या को कंट्रोल करने में किया जाता है ..इन दोनों का क्वाथ बनाकर तीस मिली की मात्रा में खाली पेट सुबह -शाम लेना लाभप्रद साबित होता है I
-एक गिलास पानी में रात्रीपर्यंत भिगोये हुए धनिये को प्रातः खाली  पेट सेवन करना भी थायराइड सम्बंधित समस्याओं में लाभ देता है I
-एक साफ़ कटोरी  में दो चमच्च पीसी अलसी का पाउडर लें इसमें बराबर मात्रा में पानी मिला लें,इसका पेस्ट  बनाकर और  ग्रंथि के स्थान पर बाहर से लेप करना भी गोयटर  की स्थिति में लाभकारी माना गया है I
-थायराइड से सम्बंधित समस्याओं  में शोधन चिकित्सा का बड़ा ही महत्व है विशेषकर पंचकर्म चिकित्सक के निर्देशन में विरेचन कर्म का प्रभाव लाभकारी है I
-प्रातः काल सात काली मिर्च का एक माह तक निरंतर सेवन एक सप्ताह तक लगातार और फिर सात-सात  दिन छोड़कर एक सप्ताह तक लेना भी थायराइड की समस्या में लाभकारी प्रभाव दर्शाता है I
-त्रिकटु चूर्ण (सौंठ +मरीच +पिप्पली बराबर मात्रा में ) पचास ग्राम लेकर इसमें बहेड़ा चूर्ण पच्चीस ग्राम एवं गोदंती भस्म पांच ग्राम + प्रवाल पिष्टी  पांच  ग्राम इन सबको मिलाकर सुबह शाम शहद के साथ लेना थायराइड की समस्या में फायदेमंद होता है I
-इसके अलावा योग-आसनों एवं प्राणयाम के अभ्यास से भी इस डिसआर्डर को कंट्रोल किया जा सकता है, विशेषकर कपालभाती एवं उज्जाई प्राणयाम का अभ्यास इसमें काफी लाभप्रद सिद्ध होता है I इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-avoid-eating-these-things-they-become-thyroid-4320660-NOR.html

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