22 अप्रैल 1970 से पूरी दुनिया में मनाया जानेवाला यह दिन हमारे लिए क्या मायने रखता है,इसपर विचार करना आवश्यक हैIभले ही इसकी शुरुवात अमेरिकी सीनेटर गेरोल्ड नेल्सन ने की हो,पर केवल एक दिन ही पृथ्वी को याद कर बांकी दिन भूल जाना हम इंसानों की फितरत हैIइस सम्बन्ध में भगवान् बुद्ध के वचन को याद करना आवश्यक होगा "जैसे खजाने पृथ्वी की की कोख से निकलते हैं, वैसे ही पुण्य अच्छे कर्मों से प्रकट होता है,ज्ञान शुद्ध बुद्धि एवं शांतिपूर्ण विचारों से उत्पन्न होता है,अतः उलझनों से भरे मानव जीवन में सुरक्षित रूप से चलने के लिए ज्ञान के प्रकाश एवं पुण्य के मार्गदर्शन की जरुरत है" भगवान् बुद्ध का यह सन्देश हमे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराने के लिए काफी हैI
हम एक ऐसे ग्रह की सतह पर स्थित हैं,जिसकी कोख हमारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, इसलिए भी भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माँ की संज्ञा दी गयी है,लेकिन बेटे जननी माँ के प्रति अपने फर्ज को कितना निभा रहे हैं,इसे हमें स्वयं से पूछने की जरूरत हैIआपने कालिदास की मूर्खता के दिनों की कहानी में उसके स्वयं बैठे पेड़ की ड़ाल को काटने की घटना सुनी होगी,शायद हम भी मूर्खतावश ऐसा ही कुछ कर रहे हैंIआज विकास की अंधी दौड़ में मार्टिन लूथर किंग जूनियर का यह सन्देश हमे सोचने पर मजबूर करेगा "संपत्ति जीवन को अच्छी तरह बिताने के लिए आवश्यक है,यह बात आवश्यक नहीं की हमने कितने अधिकार और सम्मान से इसे जोड़ा है,यह कोई व्यक्तिगत नहीं,यह पृथ्वी का हिस्सा है,जिसपर व्यक्ति चलता है,व्यक्ति नहीं !"
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