आज पूरी दुनिया आयुर्वेद की दीवानी है ,पर क्या अपने कभी सोचा है,आयुर्वेद धरती पर कैसे आया ,तो लीजिये हम बतातें हैं आपको एक नायाब कहानी। सृष्टी के नियंता ब्रह्मा को जब एहसास हुआ कि़ इस धरती पर मेरी रचित जीव रचनाएँ रोग से ग्रसित होकर दु:ख पा रही हैं ,तब उन्होंने आयुर्वेद की रचना की और अपने इस ज्ञान को सूत्र रूप में दक्ष प्रजापति को दिया,दक्ष प्रजापति से यह ज्ञान देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमार भाइयों को प्राप्त हुआ,जिन्होंने इस ज्ञान को देवताओं के राजा इन्द्र को दिया,इन्द्र से यह ज्ञान पृथ्वीलोक पर महर्षि भारद्वाज सशरीर लेकर आये और महर्षि भारद्वाज से अग्निवेश एवं धन्वन्तरी ऋषियों क़ी परम्पराओं के आचार्य चरक ,सुश्रुत एवं अन्य को यह ज्ञान प्राप्त हुआ।
कालांतर में इन ऋषियों ने अपने अनुभवों को जोड़कर अपनी -अपनी संहिताएँ रचित की। महर्षि चरक यायावर ( घुमंतू ) ऋषि थे,उन्होंने पेड़,पौधों ,जीव ,जंतुओं से प्राकृतिक अनुभव लेकर प्राणियों में उत्पन्न रोगों को ,जानने,पहचानने एवं उनकी चिकित्सा के नुस्खे एवं पंचकर्म जैसी विधा को 'काय- चिकित्सा के रूप में विकसित किया,जबकि महर्षि सुश्रुत ने शरीर में उत्पन्न शल्यों की चिकित्सा की विधियां विक्सित की ,जो बाद में 'शल्य -चिकित्सा के रूप में क्षार-सूत्र आदि अनेक विधियों के माध्यम से लोकप्रिय हुई । ऐसे ही आचार्य वाग्भट ने आयुर्वेद के आठ अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान को अष्टांग आयुर्वेद के नाम से वर्गीकृत किया। दक्षिण में अष्टांग हृद्यम नामक ग्रन्थ आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।
इन बड़े महर्षियों के ग्रन्थ आज 'वृहत्त्रयी के नाम से जाने जातें हैं ! ऐसे ही रोगों को पहचानने के लिए आचार्य माधव ने माधव -निदान नामक ग्रन्थ की रचना की। बच्चों के रोगों की विशेष व्याख्या एवं चिकित्सा की विधियों एवं नुस्खों को सूत्र रूप में लाने का श्रेय महर्षि काश्यप को जाता है। ऐसे ही अनेक आचार्यों की परम्परा से मिलकर बना आयुर्वेद ,जिसमें इंसान ही नहीं जानवरों से लेकर पेड़ पौधों तक की चिकित्सा के अनेकों गूढ़ रहस्य एवं नायब नुस्खे मौजूद हैं ,बस जरूरत है तो रह्स्यवेधन की।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए लनिक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/yoga-you-know-where-it-came-ayurveda-not-please-tell-us-2413869.html
कालांतर में इन ऋषियों ने अपने अनुभवों को जोड़कर अपनी -अपनी संहिताएँ रचित की। महर्षि चरक यायावर ( घुमंतू ) ऋषि थे,उन्होंने पेड़,पौधों ,जीव ,जंतुओं से प्राकृतिक अनुभव लेकर प्राणियों में उत्पन्न रोगों को ,जानने,पहचानने एवं उनकी चिकित्सा के नुस्खे एवं पंचकर्म जैसी विधा को 'काय- चिकित्सा के रूप में विकसित किया,जबकि महर्षि सुश्रुत ने शरीर में उत्पन्न शल्यों की चिकित्सा की विधियां विक्सित की ,जो बाद में 'शल्य -चिकित्सा के रूप में क्षार-सूत्र आदि अनेक विधियों के माध्यम से लोकप्रिय हुई । ऐसे ही आचार्य वाग्भट ने आयुर्वेद के आठ अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान को अष्टांग आयुर्वेद के नाम से वर्गीकृत किया। दक्षिण में अष्टांग हृद्यम नामक ग्रन्थ आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।
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