अक्सर हम बीमार होते हैं और दवा लेकर ठीक हो जाते हैं,दवा किसी भी पैथी क़ी हो सकती है। हमारा उदेश्य केवल ठीक होना होता है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं है कि जो दवा हमने ली उसने हमारे रोग को तो ठीक किया,पर क्या उसने किसी और रोग को तो उत्पन्न नहीं कर दिया, आयुर्वेद यह मानता है। चिकित्सा वह अच्छी जो एक रोग को ठीक कर दूसरे रोग को उत्पन्न न करे। जल्दी ठीक होने के चक्कर में हम प्राय: ऐसी दवाओं का प्रयोग कर बैठते हैं, जो एक बीमारी को तो ठीक करती है, पर तोहफे के रूप में कुछ नई बीमारियों की सौगात दे जाती है, इन सबके विपरीत आयुर्वेद रोगों के मूल पर प्रहार करता है , जिससे रोग पूरी तरह निर्मूल हो जाता है , बस आवश्यकता है 'अग्नि ' की चिकित्सा करने की।
आयुर्वेद में सभी रोगों का कारण मन्दाग्नि माना गया है , आइये हम आपको अग्नि का फंडा बताते हैं। आयुर्वेद अनुसार हमारे शरीर में 13 प्रकार क़ी अग्नि होती है , यह यदि पञ्च-महाभूतों को पचाती है तो पांच भूतअग्नि कहलाती है,यदि सात धातुओं को पचाती है तो सात धात्वाग्नि कहलाती है और सबसे प्रमुख आहार को पचाने वाली जठराग्नि को तो आप जानते ही होंगे और यदि यह मंद या तीक्ष्ण हो गयीं तो रोग होना तय समझिए। अत: स्वस्थ रहने के लिए सभी 13 अग्नियों का सम रहना आवश्यक है, है न कमाल क़ी बात, पर यह सत्य है। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसी 'अग्नि को ध्यान में रखकर चिकित्सा करते हैं ,जिनकी अग्नि मंद होती है उन्हें पाइल्स,अतिसार एवं कोलाईटीस जैसे रोग हो सकते हैं,जिनकी अग्नि विषम है उन्हें ज्वर ,प्रमेह ,पांडू,प्रमेह ,त्वक रोग आदि आक्रान्त करते हैं और तीक्ष्ण अग्नि वाले को 'भस्मक नामक रोग हो सकता है।
अत: हमें भी अपने खान-पान ,आहार -विहार,प्रकृति आदि के अनुसार 'अग्नि का विचार करते हुए चिकित्सक के परामर्श से औषधि सेवन करना चाहिए। 'अग्नि को ध्यान में रखकर क़ी गयी चिकित्सा एवं दी गयी औषधि केवल रोग को ही ठीक नहीं करती बल्कि अन्य रोग को उत्पन्न भी नहीं करती। अत: यदि आप किसी भी रोग से पीडि़त हों तो आयुर्वेदिक चिकित्सा आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है, जहां सुरक्षित,प्राकृतिक एवं सुलभ औषधियों से चिकित्सा की जाती है। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/yoga-disease-will-just-make-it-clear-2420280.html
आयुर्वेद में सभी रोगों का कारण मन्दाग्नि माना गया है , आइये हम आपको अग्नि का फंडा बताते हैं। आयुर्वेद अनुसार हमारे शरीर में 13 प्रकार क़ी अग्नि होती है , यह यदि पञ्च-महाभूतों को पचाती है तो पांच भूतअग्नि कहलाती है,यदि सात धातुओं को पचाती है तो सात धात्वाग्नि कहलाती है और सबसे प्रमुख आहार को पचाने वाली जठराग्नि को तो आप जानते ही होंगे और यदि यह मंद या तीक्ष्ण हो गयीं तो रोग होना तय समझिए। अत: स्वस्थ रहने के लिए सभी 13 अग्नियों का सम रहना आवश्यक है, है न कमाल क़ी बात, पर यह सत्य है। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसी 'अग्नि को ध्यान में रखकर चिकित्सा करते हैं ,जिनकी अग्नि मंद होती है उन्हें पाइल्स,अतिसार एवं कोलाईटीस जैसे रोग हो सकते हैं,जिनकी अग्नि विषम है उन्हें ज्वर ,प्रमेह ,पांडू,प्रमेह ,त्वक रोग आदि आक्रान्त करते हैं और तीक्ष्ण अग्नि वाले को 'भस्मक नामक रोग हो सकता है।
अत: हमें भी अपने खान-पान ,आहार -विहार,प्रकृति आदि के अनुसार 'अग्नि का विचार करते हुए चिकित्सक के परामर्श से औषधि सेवन करना चाहिए। 'अग्नि को ध्यान में रखकर क़ी गयी चिकित्सा एवं दी गयी औषधि केवल रोग को ही ठीक नहीं करती बल्कि अन्य रोग को उत्पन्न भी नहीं करती। अत: यदि आप किसी भी रोग से पीडि़त हों तो आयुर्वेदिक चिकित्सा आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है, जहां सुरक्षित,प्राकृतिक एवं सुलभ औषधियों से चिकित्सा की जाती है। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें http://religion.bhaskar.com/article/yoga-disease-will-just-make-it-clear-2420280.html
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