अक्सर हमारे मन में ये सवाल उठता है कि़ फलाँ मुझे सूट नहीं करता। ये प्रश्न खाने पीने से लेकर हमारे व्यवहार, पहनावे, दोस्त, पसंद नापसंद, स्वास्थ्य, आत्मविश्वास एवं रोगों की संभावना को जानने की जिज्ञासा लिए रहता है। आयुर्वेद में इन सभी जिज्ञासाओं का समाधान उपलब्ध है। आयुर्वेद में हर व्यक्ति की एक विशेष प्रकृति बतायी गयी है।
इसे दोषों के अनुसार अनुभवी वैद्य निर्धारित कर रोगी की पूर्ण जानकारी की अनुभूति कर लेते हैं। कुछ लोग वातप्रकृति के, कुछ पैत्तिक एवं कुछ कफजप्रकृति के होते हैं। इनमे समरूप से वात -पित्त -कफ वाले स्वस्थ एवं केवल एकल दोष प्रकृति वाले सदा रोगी होते हैं ढ्ढ प्रकृति के अनुसार ही खाने पीने की सलाह वैद्य देते हैं। जैसे
- वातिकप्रकृति वाले व्यक्ति को ठंडा,हल्का,रूक्ष खान-पान, वात को बढ़ा कर वातरोगों को जैसे जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, सीयाटिका, सिरदर्द आदि उत्पन्न कर सकते हैं।
- इसी प्रकार पैत्तिकप्रकृति वाले व्यक्तियों में गर्म, मिर्च-मसाले युक्त, तीखे, चटपटे भोजन लेने से हाइपरएसिडिटी, पीलिया, बुखार आदि रोग शीघ्र उत्पन्न हो सकते हैं।
- ठीक इसी प्रकार कफजप्रकृति के व्यक्तियों में मीठा, भारी एवं अत्यधिक चिकनाईयुक्त खान- पान, कफदोष को बढ़ाकर प्रमेह, मोटापा, हृदय से सम्बंधित विकृति, दमा आदि रोगों की संभावना उत्पन्न कर सकता है। अत: वैद्य प्रकृति के विरुद्ध ही खाने-पीने की सलाह देते हैं। इसी प्रकार प्रकृति के आधार पर हम व्यक्ति की पसंद नापसंद को जान सकते हैं ढ्ढ वातिकप्रकृति वाला वातप्रधान, पैत्तिकप्रकृति वाला पित्तप्रधान एवं कफजप्रकृति वाले को कफदोषप्रधान खान-पान पसंद आता है।
- इसी प्रकार पैत्तिकप्रकृति वाले व्यक्तियों में गर्म, मिर्च-मसाले युक्त, तीखे, चटपटे भोजन लेने से हाइपरएसिडिटी, पीलिया, बुखार आदि रोग शीघ्र उत्पन्न हो सकते हैं।
- ठीक इसी प्रकार कफजप्रकृति के व्यक्तियों में मीठा, भारी एवं अत्यधिक चिकनाईयुक्त खान- पान, कफदोष को बढ़ाकर प्रमेह, मोटापा, हृदय से सम्बंधित विकृति, दमा आदि रोगों की संभावना उत्पन्न कर सकता है। अत: वैद्य प्रकृति के विरुद्ध ही खाने-पीने की सलाह देते हैं। इसी प्रकार प्रकृति के आधार पर हम व्यक्ति की पसंद नापसंद को जान सकते हैं ढ्ढ वातिकप्रकृति वाला वातप्रधान, पैत्तिकप्रकृति वाला पित्तप्रधान एवं कफजप्रकृति वाले को कफदोषप्रधान खान-पान पसंद आता है।
ऐसे ही वातिकप्रकृति का व्यक्ति अस्थिर,चंचल, फुर्तीला,लंबा ,रुखीत्वचा,प्राय: श्यामवर्ण का हो सकता है, पैत्तिकप्रकृति वाला व्यक्ति बातों- बातों में गुस्सा करने वाला जैसे गुणों से युक्त होता है, कफज प्रकृति वाला व्यक्ति प्राय: आरामतलवी,मिष्ठानप्रेमी, प्राय: स्थूल, शांत एवं सोच -समझ कर काम करने वाला होता है। वैसे एकल प्रकृति वाले लोग कम ही होते हैं, अधिकांश द्वंदज यानी दो दोषप्रधान प्रकृति के होते हैं।
अत: आयुर्वेदिक चिकित्सक प्रकृति का आकलन कर खाने- पीने,व्यवहार करने , दवा लेने की सलाह देते हैं ढ्ढ तो यदि आप भी जानना चाहते हैं ,अपनी प्रकृति से सम्बंधित गूढ़ रहस्यों को तो आज ही आयुर्वेद को अपनाएं और अपना प्रकृति निर्धारण कर स्वस्थ एवं सुखी जीवन का आनंद लें। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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