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मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

आयल पुलिंग :आयुर्वेद की चमत्कारिक तकनीक


images.jpgचिकित्सा के कुछ ऐसे नायाब तरीके जिसमें आपको कुछ भी खर्च न करना पड़े और लाभ भी मिले लोगों में लोकप्रिय होते जा रहे हैं !आयुर्वेद की एक ऐसी ही तकनीक जिसे आचार्यों ने "गंडूषकर्म"  नाम दिया है, आज अपनी सरल और अच्छे प्रभाव के कारण धीरे-धीरे प्रचलित हो रही है Iइस तकनीक पर हाल के ही दिनों  में कुछ शोधकर्ताओं ने शोध भी किये हैं और उनके परिणाम काफी सकारात्मक रहे हैं Iऐसा देखा गया है कि कुछ रोगों में तो लाभ महज दो दिनों में ही सामने आ जाता है, जबकि कुछ में एक साल का समय लग जाता है Iहाँ"आयल-पुलिंग" नाम से प्रचलित यह तकनीक को कम से कम लगातार चालीस से पचास दिनों तक प्रयोग में लाये जाने के आवश्यकता होती है !आप जानना चाहेंगे की क्या है यह "आयल-पुलिंग" तकनीक ?तो हम आपको इसके सरल तरीके को समझाते हैं :-
* प्रातःकाल में  सबसे पहले  चाय या किसी  अन्य पेय पदार्थ का सेवन करने से पूर्व इस तकनीक को अपनाने का बेहतर समय है !
* आप शीशम या सूरजमुखी के तेल को मुहं के अन्दर रख लें ..अब आप इस तेल को आराम से दातों के चारों ओर लगभग बीस मिनट तक घुमाएं,हालाकि इसे यदि आप अत्यंत तीव्र गति से घुमायेंगे तो भी आपको नुकसान नहीं होगा लेकिन बेहतर है की आप इसे आराम से करें !
* अपनी गर्दन को पीछे की ओर न झुकायें अन्यथा आप इसे निगल जायेंगे .यदि आपको ऐसा लग रहा हो की यह निगल जानेवाला है तो इसे बाहर थूक दें !
* बीस मिनट के बाद मुहं के भीतर के तेल को थूक के साथ बाहर फैंक दें हाँ इसके रंग का परिवर्तन आपको अवश्य ही दिखेगा जो प्रयोग में लाये गए तेल के मुताबिक़ अलग अलग हो सकता है !
* अब आप अपने दाँतों को हलके हाथों से ब्रश कर लें साथ ही जीभ को साफ़ कर लें !इसमें बांकी बचे जीवाणु भी बाहर आ जायेंगे !
* अपने  वाश-बेसिन को को किसी जीवाणुरोधी लिक्विड से साफ़ कर लें !
डॉ .कराच जिन्होंने आयल-पुलिंग पर एक विस्तृत शोध किया है उन्होंने पाया है कि आयल-पुलिंग के बाद निकले एक बूंद थूक में जीवाणुओं के लगभग 500 प्रजातियाँ बाहर आ जाती हैं ,अर्थात शरीर से जीवाणुओं को बाहर करने में आयल-पुलिंग थेरेपी बड़ा ही कारगर होती है !
ब्रुश फाईफ ने "Oil Pulling Therapy: Detoxifying and Healing the body through Oral Cleansing" नाम से एक पुस्तक लिखी है जिसमें उन्होंने स्ट्रेप्टोकोकस एवं केंडीडा नामक जीवाणुओं को सबसे सामन्य तौर पर ओरल केवीटी का निवासी पाया है !तनाव ,कुपोषण एवं वातावरण में पाए जानेवाले प्रदूषक पदार्थ इनसे निकलने वाले टोक्सिंस को पूरे  शरीर में पहुंचा देते हैं, जिससे सेकेंडरी संक्रमण होने का ख़तरा काफी बढ़ जाता है !अतः उनका मानना है की आयल-पुलिंगजैसी तकनीक को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए !
आयल-पुलिंग के लाभ :-
*यह तकनीक एलर्जी को दूर करने में कारगर है !
*दमे के रोगीयों में भी इसे  लाभकारी पाया गया है !
* उच्चरक्तचाप के रोगियों में भी इसे फायदेमंद देखा गया है !
*कब्ज ,माइग्रेन एवं इन्सोमनीया जैसी अवस्था में भी इस तकनीक का प्रयोग लाभकारी है !
शोधकर्ताओं का यह भी मानना है की मसूड़ों और दाँतों से समबन्धित समस्याओं में इस तकनीक के तत्काल फायदे को महसूस किया जा सकता है,कुछ में तो यह बंद पड़े सायनस से म्यूकस को बाहर निकालने का काम करता है ,जिससे तत्काल लाभ मिलता है !सुखद पहलू यह है की योग की तरह ही आयुर्वेद की दिनचर्या को पालन करने हेतु प्रातः काल अपनाये जानेवाली  "गंडूषकर्म" नाम   से उद्धृत यह  तकनीक आज पूरे  विश्व में आयल- पुलिंग नाम से लोकप्रिय हो रही है !
इसी आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मंत्र पर पढ़ने के लिए लिंक पर जाएँ
http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-ancient-ayurvedic-recipe-rinse-off-the-oil-that-has-become-the-major-diseas-4238255-NOR.html

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