एच.आई.वी.वायरस का नाम सुनकर हमें एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या का ध्यान आता है ,जिससे दुनिया का हर वर्ग खतरे में है !इस बीमारी को इस रूप में जानते हुए आज तीस साल हो गए पर अभी तक इसके वेक्सीन की तलाश जारी है I आज भी इस रोग की जानकारी ही, इसके बचाव का एक मात्र साधन है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि हममें से कुछ ही लोग स्वयं का एच.आई.वी. स्क्रीनिंग कराते हैं ,इसके पीछे इस रोग के बारे में फ़ैली सामाजिक भ्रान्ति एक बड़ा कारण है !यू.एन.एड्स के आंकड़ों पर गौर करें तो आप अचंभित रह जायेंगे ,पूरी दुनिया में एच.आई.वी.संक्रमित 50% लोगों को इसका पता ही नहीं की वो संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं I प्रतिवर्ष ढाई करोड़ नए लोगों को यह वायरस संक्रमित कर रहा है, लेकिन हममें से कितने लोग हैं जो स्वयंका एच.आई.वी. स्टेटस जानने की चेष्टा करते हैंI हाल ही में किया गया एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन इस बात की पुष्टि कर रहा है कि स्वयं की स्क्रीनिंग ही इस समस्या से रोकथाम करने का एक मात्र उपाय है !दुनिया के कई देशों ने लोगों में स्वयं की एच.आई.वी.को स्क्रीनिंग को प्रचारित किये जाने की दिशा में जागरूकता अभियान चलाया है !सबसे बड़ी बात है की अब एच.आई.वी. स्क्रीनिंग कम समय में बगैर किसी तकलीफ के किये जाने वाला परीक्षण बन चुका है Iजर्नल प्लस मेडिसीन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार लोग प्रयोगशाला में रक्त परीक्षण के स्थान पर स्वयं के द्वारा इस रोग का "ओरल-सेल्फ-टेस्ट" किये जाने को वरीयता देते हैं ,इसके पीछे"ओरल-सेल्फ-टेस्ट" का आसान और बगैर सूई चुभाये होना है ! शीघ्र इस शोध के द्वारा आये परिणामों को ध्यान में रखते हुए एच.आई.वी.वायरस की "ओरल-सेल्फ-टेस्टिंग" का व्यापक प्रचार प्रसार होगा ,क्यूंकि इस रोग की पूर्ण चिकित्सा तलाशना अभी बांकी है, साथ ही इससे जुड़े सामाजिक पहलूओं को तत्काल बदलना भी एक कठिन कार्य है !
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